जीवन को झकझोर देने वाले 101 कड़वे प्रवचन – मुनि श्री तरुण सागर जी

अदभुत 101 कड़वे प्रवचन – क्रांतिकारी जैन संत मुनि श्री तरुण सागर जी मुनिराज। आप दिगम्बर जैन आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज से मात्र 13 वर्ष की आयु में दीक्षित हो अपने कड़वे प्रवचन से जगत में जैन धर्म का अनुपम प्रचार प्रसार किया।

अखण्डता की कीमत कड़वे प्रवचन – 1 

” मैंने पांच सौ का नोट दिखाकर पूछा – किसको चाहिए ?

सबने हाथ खड़े कर दिए।

फिर नोट को मोड़ा -मरोड़ा।

उसकी पुड़िया बना दी और पूछा – अब किसको चाहिए ?

सबने हाथ खड़े कर दिए।

फिर नोट को नीचे डालकर उसे पैरों से रौंदा, कुचला और पूछा।

अब नोट किसको चाहिए ?

अब भी बहुत से हाथ ऊँचे उठे।

फिर नोट को फाड़ा, उसके चार टुकड़े कर दिए और पूछा –

अब किसे चाहिए ?

अब एक भी हाथ न उठा।

यह बहुत उपयोगी पाठ है।  जो अखंड है, उसकी कीमत है।

जो टुकड़ों में बँट गया उसे कोई पूछने वाला नहीं है।

जैन समाज को चाहिए कि वह अपने दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तेरापंथी जैसे शब्दों को कचरे के डिब्बे में डाल दे

और सिर्फ जैन बनकर जिए।  विशेषण हटाए और विश्लेषण करे।


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