विद्यमान बीस तीर्थंकर पूजा | Vidhyamaan 20 Teerthankar Poojan

विदेह क्षेत्र में विराजमान २० तीर्थंकर श्री सीमंधर-युगमंधर-बाहु-सुबाहु-संजात-स्वयंप्रभ-ऋषभानन-अनन्तवीर्य-सूर्यप्रभ-विशालकीर्ति-वज्रधर-चन्द्रानन-भद्रबाहु-भुजंगम-ईश्वर-नेमिप्रभ-वीरसेन-महाभद्र-देवयश-अजितवीर्य जी महापूजन (Vidhyamaan 20 Teerthankar Poojan) नियम से मोक्ष सुख को प्रदान करने वाली है।

विद्यमान बीस तीर्थंकर पूजा ( Vidhyamaan 20 Teerthankar Poojan)

द्वीप अढ़ाई मेरु पन, सब तीर्थंकर बीस |
तिन सबकी पूजा करूँ, मन-वच-तन धरि शीस ||
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान विंशति तीर्थंकरा:! अत्र अवतर अवतर
संवौषट्! (इति आहवाननम्)
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान विंशति तीर्थंकरा:! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:!
ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान विंशति तीर्थंकरा:! अत्र मम सन्निहितो
भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)

अथाष्टक

इन्द्र-फणीन्द्र-नरेन्द्र-वंद्य पद-निर्मल धारी,
शोभनीक संसार सार-गुण हैं अविकारी |
क्षीरोदधि-सम नीर सों (सों हो) पूजौं तृषा-निवार,
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार |
श्री जिनराज हो, भव-तारणतरण जहाज, श्री महाराज
हो ||

ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य: जन्म-जरा-मृत्यु
विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

(इस पूजा में बीस पुञ्ज करना हो, तो प्रत्येक द्रव्य
चढ़ाते समय मंत्र इस भांति बोलना चाहिए)

ॐ ह्रीं श्री सीमंधर-युगमंधर-बाहु-सुबाहु-संजात-स्वयंप्रभऋषभानन-अनन्तवीर्य-सूर्यप्रभ-विशालकीर्ति-वज्रधरचन्द्रानन-भद्रबाहु-भुजंगम-ईश्वर-नेमिप्रभ-वीरसेनमहाभद्र-देवयश-अजितवीर्य इति विदेह क्षेत्रे विद्यमान-
विंशति-तीर्थंकरेभ्यो जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं
निर्वपामीति स्वाहा |१|

तीन लोक के जीव पाप-आताप सताये,
तिनको साता-दाता शीतल-वचन सुहाये |
बावन-चंदनसों जजूँ (हो) भ्रमन-तपन निरवार
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार |
श्री जिनराज हो, भव-तारणतरण जहाज, श्री महाराज
हो ||
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य:भवताप-
विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।२।

यह संसार अपार महासागर जिनस्वामी,
तातैं तारे बड़ी भक्ति-नौका जगनामी।
तंदुल अमल सुगंध सों (सों हो) पूजौं तुम गुणसार
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार |
श्री जिनराज हो, भव-तारणतरण जहाज, श्री महाराज
हो ||
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य: अक्षयपद-प्राप्तये
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।३।

भविक-सरोज-विकास, निंद्य-तम-हर रवि से हो,
जति-श्रावक-आचार, कथन को तुम ही बड़े हो |
फूल सुवास अनेक सों (सों हो), पूजौं मदन-प्रहार
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार |
श्री जिनराज हो, भव-तारणतरण जहाज, श्री महाराज
हो ||
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य: कामबाण-
विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।४।

काम-नाग-विषधाम, नाश को गरुड़ कहे हो,
छुधा महादव-ज्वाल, तास को मेघ लहे हो |
नेवज बहुघृत मिष्ट सों (सों हो), पूजौं भूख-विडार
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार |
श्री जिनराज हो, भव-तारणतरण जहाज, श्री महाराज
हो ||
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य: क्षुधारोग-
विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

उद्यम होन न देत, सर्व जग-माहिं भर्यो है,
मोह-महातम घोर, नाश परकाश कर्यो है |
पूजों दीप-प्रकाश सों (सों हो), ज्ञान-ज्योति करतार
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार |
श्री जिनराज हो, भव-तारणतरण जहाज, श्री महाराज
हो ||
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य: मोहांधकार-
विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।

कर्म आठ सब काठ, भार विस्तार निहारा, ध्यान अगनि कर प्रकट, सरब कीनो निरवारा |
धूप अनूपम खेवतें (हो), दु:ख जलैं निरधार
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार |
श्री जिनराज हो, भव-तारणतरण जहाज, श्री महाराज
हो ||
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य: अष्टकर्म-दहनाय
धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।

मिथ्यावादी दुष्ट लोभऽहंकार भरे हैं।
सब को छिन में जीत, जैन के मेरु खरे हैं |
फल अति-उत्तम सों जजौं (जौं हो), वांछित फलदातार
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार |
श्री जिनराज हो, भव-तारणतरण जहाज, श्री महाराज
हो||
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य:मोक्षफल-प्राप्तये
फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।

जल-फल आठों द्रव्य, अरघ कर प्रीति धरी है,
गणधर इन्द्रनि हू तैं, थुति पूरी न करी है |
‘द्यानत’ सेवक जानके (हो), जग तें लेहु निकार
सीमंधर जिन आदि दे बीस विदेह-मँझार |
श्री जिनराज हो, भव-तारणतरण जहाज, श्री महाराज
हो ||
ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य: अनर्घ्यपद-प्राप्तये
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।९।

जयमाला

(सोरठा)

ज्ञान-सुधाकर चंद, भविक-खेत हित मेघ हो |
भ्रम-तम-भानु अमंद, तीर्थंकर बीसों नमौं || मौं

(चौपाई १६ मात्रा)

सीमंधर सीमंधर स्वामी, जुगमंधर जुगमंधर नामी |
बाहु बाहु जिन जग-जन तारे, करम सुबाहु बाहुबल
धारे ||१||

जात संजातं केवलज्ञानं, स्वयंप्रभू प्रभू स्वयं प्रधानं |
ऋषभानन ऋषि भानन तोषं, अनंतवीरज वीरजकोषं
||२||

सौरीप्रभ सौरीगुणमालं, सुगुण विशाल विशाल दयालं|

वज्रधार भवगिरि-वज्जर हैं, चंद्रानन चंद्रानन-वर हैं ||३||

भद्रबाहु भद्रनि के करता, श्रीभुजंग भुजंगम हरता |
ईश्वर सब के ईश्वर छाजैं, नेमिप्रभु जस नेमि विराजैं ||
४||

वीरसेन वीरं जग जानै, महाभद्र महाभद्र बखानै |
नमौं जसोधर जसधरकारी, नमौं अजितवीरज
बलधारी ||५||

धनुष पाँचसौ काय विराजै, आयु कोडि पूरव सब
छाजै |
समवसरण शोभित जिनराजा, भवजल-तारन-तरन-
जिहाजा ||६||

सम्यक्-रत्नत्रय-निधिदानी, लोकालोक-प्रकाशक
ज्ञानी |
शत-इन्द्रनि कर वंदित सोहैं, सुर नर-पशु सबके मन
मोहैं ||७||

(दोहा)
तुमको पूजे वंदना करे धन्य नर सोय |
‘द्यानत’ सरधा मन धरे, सो भी धरमी होय ||

ॐ ह्रीं श्री विद्यमान-विंशति-तीर्थंकरेभ्य: जयमाला-पूर्णार्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।


जैन पूजन संग्रह :