श्री अड़िन्दा पारसनाथ जिन पूजा। रचयिता- पंडित रीवाचंद जी

श्री अड़िन्दा पारसनाथ पूजा ( Adinda Parasnath Poojan ) : यह महान अतिशयकारी तीर्थक्षेत्र उदयपुर राजस्थान से 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र पर विराजमान प्रभु पारसनाथ स्वामी की प्रतिमा बड़ी ही मनोहारी एवं अतिशय से संपन्न है।  तो आप भी अब अपने नगर के जिनमंदिर में करे भगवान श्री पार्श्वनाथ जी की भावपूजा। जो अत्यंत फलदायी है।

( श्री अड़िन्दा पारसनाथ जिन पूजा )

 (दोहा )

अश्वसेन कुल चंद्रमा, वामा उर अवतार।
वंश इस बाकू सूर्य हो, शिवरमणी भरतार ।1
ऐसे पार्श्व जीनेश जी, तिष्ठ हु अत्र पधार।
आष्ट द्रव्य पूजा रचू, मन वच काय सुधार।

ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्!

ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:!  स्थापनम्

ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिरणम्

( अष्टक )
उत्तम जल शुद्ध मंगाय भर जारी प्यारे,
प्रभु चरणम् देहू चढ़ाय भव दधि पार करें।
श्री अडिंदा जी पार्श्वनाथ, तुम गुण उर धारे,
मम जन्म जरा निवार, पूजू पद थारे।।
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।1

घसी केशर चंदन लाय, प्याली भर प्यारे,
प्रभु पायन देहू चढ़ाय, भव आताप हरे।
श्री अडिंदाजी पार्श्वनाथ, तुम गुण उर धारे ,
मम भव आताप नीवार ,पुंजू पद थारे।
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ  संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2

फेन चंद्र के समान, अक्षतान् लाय के |
चर्ण के समीप सार पुंज, को रचाय के ||
श्री अडिंदाजी पार्श्वनाथ, तुम गुण उर धारे l
मम भव आताप नीवार ,पुंजू पद थारे ||­
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वना अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 3

केतकी केवड़ा पुष्प ,कमल सुगंध भरे l
जिन चरण कमल विचधार, काम विथा जारे l l
श्री अडिंदाजी पार्श्वनाथ, तुम गुण उर धारे l
मम काम बाण निरवार, पुंजू पद थारे ||­
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ कामबाण-विध्वन्सनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। 4

नैवेद्य अनेक प्रकार, इंद्रिय बल कारे l
तुम भेंट करूं गुण गाए, डायन क्षुधा जरे l l
श्री अडिंदाजी पार्श्वनाथ, तुम गुण उर धारे l
मम क्षुधा रोग निवार, पुंजू पद थारे ||­
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5

घत भर कपूर मंगाय, रतनन ज्योत करें l
मम मोह तिमिर निरवार ,आत्म ज्ञान करे l l
श्री अडिंदाजी पार्श्वनाथ, तुम गुण उर धारे l
मम मोह करम निवार, पुंजू पद थारे ||­
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6

चंदन चुरा मंगवाया ,धूप दसांगी करें l
तुम चरण खेऊं मनलाय, आठों कर्म जरे l l
श्री अडिंदाजी पार्श्वनाथ, तुम गुण उर धारे l
मम अष्ट करम निवार, पुंजू पद थारे ||­
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 7

इलायची लॉग फल सार श्रीफल धरे l
फल मोक्ष मिले हितकार तुम गुण भेंट करे l l
श्री अडिंदाजी पार्श्वनाथ, तुम गुण उर धारे l
मम मौह महाफल दाय, पुंजू पद थारे ||­
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। 8

जल फल सब दरब संभार ,पुंजू अर्घ्यं करे l
मम आवा गमन निवार, सनमुख नृत्य करे l l
श्री अडिंदाजी पार्श्वनाथ, तुम गुण उर धारे l
मम अर्घ्यं पद दातार निवार, पुंजू पद थारे ||­
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।9

पंचकल्याणक-अर्घ्यावली
वैशाख कृष्णा दोज आई , वामादे सुपने पाई l
दश छ: गिन लो भाई , तड़े पीऊं पूछन जाई l l
फल गर्भ  तीर्थंकर आई फल सुनीमाता सुख पाई l
मातु सेवन छपन आई, नपव मास बीते सुख पाई l l

ॐ ह्रीं वैशाख-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भकल्याणक-प्राप्ताय श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।1

मास पनद्रह रत्न वरर्षाइ, तब पौष एकादशी आई l
जब जन्मे पारस राई लखी, इंद्र आसन कंपाइ l l
परिवार सहित इंद्र आई ,कीयो नमन सुमेरू जाई l
फिर पिता सदन सब आई, पिता गोद दिया प्रभु लाई l l

ॐ ह्रीं पौषकृष्ण-एकादश्यां जन्म कल्याणक-प्राप्ताय श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।2

नहीं राज कियो न विवाही, कारण लही वैराग्य पाई l
विदी पौष एकादशी आई, लोकातीक बोधन आई l l
केश लौंच कियो वन जाई, करी बेला पारस थाईl
नृप घर पर अशन कराई, फिर तप धारियो वन जाई l

ॐ ह्रीं पौषकृष्ण-एकादश्यां तपकल्याणक-प्राप्ताय श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।3

उपसर्ग जु कमठ गराई प्रभु द्वादश भावना भाई l
बारम गुण थानक जाई ,चऊ  घाति कर्म नशाइ l l
तिथि चैत्र वदी चौथ आई ,प्रभु केवल ज्योति पाई l
हरी समय शरण रचवाई, भावी बौधे श्री जिनराई l l

ॐ ह्रीं चैत्राकृष्ण-चतुर्थ्यां ज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय
श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ  अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।4

कर्म घाति अघाती नशाइ शिवनार वरी प्रभुराई l
सावन सुदी सातम आई, माया मय गोत्र बनाई l l
करी दुग्ध क्रिया सूरराई, फिर सुर निज थानक जाई l
रेवंत पर कर किर-पाई, देहूं मोक्ष पूरी बतलाई l l

ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ल-सप्तम्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।5

जयमाला
पारस गुण को अंत नहीं गणधर पार न पाय l
अल्प बुद्धि अनुसार में जयमाला गुण गाय l l
वामा नंदन कल्प तरु अश्वसेन सूत् भाय l
अडिंदा नगरी में तिस्टते, गुण गाऊं मन लाय l l

छंद चौपाई
जय पार्श्वनाथ देवा दी देव,
शत इंद्र करत तुमरी जु सेव l
तुम बाल ब्रह्मचारी विशेष,
जन्मे काशीपुर में जिनेश l l

परसूति थान इंद्राणी जाय,
तुम गोद लेय मन मोद पाय l
सब देव मिल जय-जय कराय,
या विधि ते ले सूर्य सूर गिरी को जाय।।

बाजे अनहद दुंदुभी बजाय,
फिर हवन विधि पूर्ण कराय l
सुरवर अब तांडव नृत्य कराय,
सुर गिरी वर पर आनंद थाय।।

सूर्य मग्न भय प्रभु शीश नवाय,
करी सहस नयन दर्शन कराय l
उत्सव करी काशी पुरहि आय,
पितु गोद देय सुर थान जाय।।

वह बाल जाय प्रभु तरण थाय,
ले सखा संघ क्रीडा ही जाय  l
देखें नाना कुतप कराय,
लकड़ी में अहि नागिनी जलाय।।

अवधी ते जान्यो अहिजराय,
तब तपसी सो प्रभु इन कहाय l
किमि जीव हते दुश्तप कराय,
तपसी सुनी ज्वाला मुखी थाय।।

लइ फरशो काठ  किरण कराय,
जलते जू नाग नागिन लखाय l
सुने पार्श्व वैन अहि मन लगाय,
धर*द्र वाह पाताल जाय।।

तपसी अणुव्रत पालन कराय,
मरी संवर ज्योतिषी देव थाह l
क्रिड़ा करी प्रभु निज सदन आया,
करो राज विवाह पिता कहाय।।

नहीं राज क करूं, ना विवाह होय,
तप करूं मुझे आदेश दोय
एमी चिंते लोकांतिक जूआय
संबोधन करी जन थान जाय।।

कंच लॉच पंच मुट्ठी कराय,
करी बेला , फिर पालण कराय l
तप करते काल व्यतीत होय,
ज्योतिषी संवर तहां गगन जाय।।

अटक्यो विमान अवधि लगाय,
प्रभु तप करते लक्षित खुद कुरूद हाय l
मायामय मेघ घटा गिराय,
बिजली चमकाइ कड़ कढ़ाय।।

मूसलाधार वर्षा कराय,
लखी कायर की छाती फटाय l
उपसर्ग घोर किनो बनाय,
प्रभु नहीं कंपे भावन जू भाय।।

कंपे जू भवन धरणेन्द्र राय,
अवधि जान्यो उपसर्ग थाय l
पद्मावती अरु धरणेन्द्र आय,
फिर ले फन मंडल कराय।।

संबल को जोर न चलियो कोय,
प्रभु घाटी कर्म चूर्ण कराय l
प्रभु भारत केवल ज्ञान पाय
शुभ समवशरण धनपति रचाय।।

भवि भागन वश वाणी खीराय,
मुनि बारह सभा आनंद पाय
फिर देश- विदेश विहार होय,
उपदेश देय भविजन तराय।।

एक मास शेष आयु रहाय,
सम्मेद शिखर पहुंचे जूजाय l
त्रय योग निरोध श्री जीनाय,
सावन सुदी सातम मोक्ष पाय।।

सुवरण भद्र पै सूर ही आय,
निरवाण  सु कल्याणक मनाय l
इमी पारस गुण का अंत नाय,
आगम अनुकूल रेवत गाय।।

एक अडिंदा नगरी मेवाड़ माही,
तन्हा रावत बहु रहाहि l
तन्हा पारस जिन मंदिर बनाय
अतिशय युत महिमा किमि कहाय।।

प्रति पूनम को यात्रालू आय,
प्रति वार्षिक दो मेला भराय l
एक पोर्श कृष्ण एकादशी कहाय,
दूजा पूनम वैशाख माय।।

नर नारी को समुदायक आय
जिनकी संख्या कई सहस्त्र थाय l
कई अष्ट द्रव्य पूजन रचाय,
नाचे गावे जय जय कराय।।

बाठरडा से दूरी लखाय,
अनुमानित आधा कोष होय l
कई नाच गाना भक्ति कराय,
मनवांछित कारज सिद्धा थाय।।

एक मणि चमकती फन जू माही,
जीन बिंदु  चतुवर्षित  लखाय l
दर्शन ते पाप पलाय जाय,
जो भक्ति करें मन में लव लगाय।।

भट्ठारक हुए भवनराय,
जानो मैं उनका शिष्य भाय l
उनके प्रसाद पूजन बनाय,
रेवाचंद है जेनी कहाय।।

नरसिंहपुरा में जन्म पाय,
बाठरडा नगर निवास भाय l
गुरुकृपा थकी पूजन बनाय,
भवि पढ़ो सुनो पूजन कराय।।

कुछ भूल चूक या मैं जु होय,
क्षमा करो बंधु जन ही लोय l
शुभ नगर अडिंदा मध्य जान
जिन भवन तिन शोभायमान।।

पूरब पश्चिम दोऊ चैत्य द्वार,
शांति पारस बिंब विराजत सार l
एक दक्षिण मुख मंदिर सुजान,
वहां पारस बिंब विराजमान।।

सम्मत एक ग्यारह में जूसार हुई,
जहां प्रतिष्ठा भव्य तार l
दुई सहस साल प्राचीन मान
अतिशय युत अडिंदा क्षेत्र जान।।

दर्शन ते पातक दूर थाय,
मंदिर पाछे बावड़ी लखाय l
जिनका है सुंदर नाम पाय,
पावन निर्मल जल मन लगाय।।

जो ध्यान करें तन मन लगाय,
कोटित: संकट ताका कटाय l
कहे रेवाचंद सुशीष नाय,
जन पढ़ो सुनो मन वच काय।।
दोहा
पारस गुण को अंत नहीं जानत केवल नाथ।
जैसे जल बीच चंद्रमा हाथ ना आवे बाथ।।
जैसे पारस गुण कवि कहत न सम्रत होय।
धन्य धन्य महावीर जीन कहीं गए बोध सुलोय।।
ॐ ह्रीं श्री अड़िन्दा पार्श्वनाथ जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।