20वीं सदी के प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज आरती। Aacharya Shantisagar Aarti

भोजग्राम में जन्मे कुंथलगिरि में समाधिस्थ आचार्य प्रवर तपमूर्ति श्री १०८ शांतिसागर जी महामुनिराज (Aacharya Shantisagar Aarti) की मंगलमयी आरती।

मंगल पावन आचार्य श्री शान्तिसिंधु सूरीश्वर आरती 

रचयित्री : आर्यिका श्री १०५ चंदनामती माताजी

( तर्ज – मन डोले, मेरा ……..)

जय जय गुरुवर, हे सूरीश्वर, श्री शांति सिंधु महाराज की,

    मैं आज उतारूँ आरतिया।। टेक।।

जग में महापुरुष युग का, परिवर्तन करने आते।

अपनी त्याग तपस्या से वे, नवजीवन भर जाते।।

गुरु जी नवजीवन……

जग धन्य हुआ, तव  जन्म हुआ, मुनि परम्परा साकार की,

  मैं आज उतारूँ आरतिया।। १।।

कलियुग में साक्षात मोक्ष की, परम्परा नहिं मानी।

फिर भी शिव का मार्ग खुला है, जिस पर चलते ज्ञानी।।

गुरूजी जिस पर ……

मुनि पद पाया, पथ दिखलाया, चर्या पाली जिननाथ की,

  मैं आज उतारूँ आरतिया।। २।।

मुनि देवेन्द्रकीर्ति गुरुवर से, दीक्षा तुमने पाई।

भोजग्राम माँ सत्यवती की, कीर्तिप्रभा फैलाई।।

गुरूजी कीर्तिप्रभा …….

हे शान्तिसिंधु, हे विश्ववन्द्य, तेरी महिमा अपरम्पार थी,

  मैं आज उतारूँ आरतिया।। ३।।

परमेष्ठी आचार्य प्रथम तुम, इस युग के कहलाए।

सदियों सोई मानवता को, आप जगाने आये।।

गुरूजी आप………..

तपमूर्ति बने, कटुकर्म हने, उत्तम समाधि भी प्राप्त की,

  मैं आज उतारूँ आरतिया।। ४।।

श्री चारित्रचक्रवर्ती के, चरणों में वंदन है।

अहिविष भी “चंदनामती”, तुम पास बना चन्दन है।.

गुरुजी ……..

भव पार करो, कल्याण करो, मिल जावे बोधि समाधि भी,

  मैं आज उतारूँ आरतिया।। ५ ।।

।। Aacharya Shantisagar Aarti सम्पूर्णम ।।


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