ज्ञानी माता और ज्ञानी पुत्र का सारपूर्ण संवाद | पढ़ना जरूर आनन्द न आये तो कहना |
ज्ञानी माता और ज्ञानी पुत्र का सारपूर्ण संवाद ( Gyani Mata aur Gyani Putra ka Sanvaad ) :
ज्ञानी माता और ज्ञानी पुत्र का संवाद
रचयिता :- आ० ब्र० रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
माता –
सुखी रहो घर माहिं बेटा हठ तजो।
बेटा-
जागो उर वैराग्य माता मोह तजो।।
माता-
समय खेलने का यह बेटा, क्या कुछ कमी दिखाय।
क्यों वन जावे धरे योग क्यों, मोको व्यर्थ रुलाय?
सुखो रहो घर माहिं बेटा हठ तजो।
बेटा-
चिर तैं भ्रमते बहु दु:ख पाये, अब यह अवसर आयो।
आत्मबोध आनंदमय पायो, और न कछू सुहायो।।
जागो उर वैराग्य माता मोह तजो।।१।।
माता-
कोमल तन है हीन संहनन कैसे साधो योग।
कैसे चित्त लगेगा वन में, छोड़ मनोहर भोग।।
सुखी रहो घर माहिं बेटा हठ तजो।
बेटा-
घर तो कारागृह सम लागे, विषय हलाहल रूप।
अशरण भवसागर में दीखे शरण शुद्ध चिद्रूप।।
जाओ उर वैराग्य माता मोह तजो।।२।।
माता-
कौन संभालेगा यह वैभव, पाले कौन कुटुम्ब।
कौन को देखके धैर्य धरूंगी, कौन कहेगा अम्ब।।
सुखी रहो घर माहिं बेटा हठ तजो।
बेटा-
धूल समान जगत का वैभव, भासा सर्व असार।
झूठी प्रभुता झूठी ममता, भव-भव में दु:खकार।।
जागो उर वैराग्य माता मोह तजो।।३।।
माता-
जग में आये हो तो देखो जग के भी कुछ ठाठ।
जिसमें फिर आकर्षण में फंस होउ न बारा वाट।।
सुखी रहो घर माहिं बेटा हठ तजो।
बेटा-
अविनाशी सुखमय निज वैभव, निज पद ही है सार।
पाने योग्य स्वयं में पाया, आनंद अपरम्पार।।
जागो उर वैराग्य माता मोह तजो।।४।।
माता-
योग मार्ग में घोर परीषह अरु उपसर्ग सताय।
नाना स्वांग अरु ऋद्धि दिखाकर देव कभी ललचाय।।
सुखी रहो घर माहिं बेटा हठ तजो।
बेटा-
निर्भय स्वयं सिद्ध शुद्धातम, भय नहीं दीखे कोय।
पूर्ण स्वयं में, तृप्त सहज ही, वांछा ही नहीं कोय।।
जागो उर वैराग्य माता मोह तजो।।५।।
माता –
देख रही थी तेरी दृढ़ता, धनि तेरा वैराग्य।
जाओ सुख का यही मार्ग है, झूठा जग अनुराग।।
ध्याओ आत्मस्वरूप, मैं भी कब दीक्षा धरूं?
बेटा-
धन्य हुआ तुमसी मां पाई, पायो आत्मस्वरूप।
आनन्दित हो वन को जाऊं, धरूं दिगम्बर रूप।।
जागो उर वैराग्य माता मोह तजो।।६।।
माता-
कौन है माता, कौन है बेटा, सब ही हैं भगवान।
नित्य निरंजन, शुद्ध बुद्ध प्रभु, निश्चय सिद्ध समान।।
ध्याऊं आत्मस्वरूप, मैं भी कब दीक्षा धरूं?
बेटा-
रहूं सहज निर्ग्रन्थ अकिञ्चन, ध्याऊं आतमराम।
मोह नशाऊं, कर्म भगाऊं, पाऊंगा शिवधाम।।
जागो उर वैराग्य माता मोह तजो।।७।।