श्री माणिभद्र वीर स्तुति, स्तोत्र, चालीसा, मंत्र एवं आरती
श्री माणिभद्र वीर जिनधर्म अनुयायीओं के रक्षक एवं प्रकट प्रभावी देव है। तपागच्छ के अधिष्ठायक देव भी माने गए है। यहाँ हमने (Shri Manibhadra Veer ) की Stuti, Stotra, Chalisa, Mantra, Aarti का संग्रह करने का प्रयास किया है। इनकी भक्ति आराधना से भक्तों के सभी कष्ट, रोग शोक, भय पीड़ा नष्ट हो जाते है। इनके प्रमुख तीन स्थान है – उज्जैन, आग्लोड़ गुजरात, मगरवाडा तीर्थ।
श्री माणिभद्र वीर स्तुति ( Shri Manibhadra Veer Stuti )
ऊँ ह्रीं श्रीँ माणिभद्र इन्द्र ! सर्वमंगलकारकः ।
प्रत्यक्ष दर्शनं देहि मच्छ्रद्धा प्रीति-भक्त्तित: ॥१॥
विद्यां देहि धनं देहि पुत्रं च पुत्रीकाम् ।
कीर्तिँ देहि यशो देहि, प्रतिष्ठां देहि च स्त्रियम् ॥२॥
सर्वं मे वाञ्छितं देहि, सुखं शांति प्रदेहि में ।
वादे विवादे युद्धे च, जयं मेे कुरु सर्वत: ॥३॥
राज्यं च राज्यमानं च बलबुद्धिं प्रवर्द्धय।
गर्भस्थबालकं रक्ष, रोगेभ्यो रक्ष बालकान् ॥४॥
आधिं व्याधिं विपतिं च, महाभीतिं विनाशय ।
घातकेभ्यश्च मां रक्ष, रात्रौ दिवा च सर्वदा ५॥
अपमुत्यु प्रयोगाणां, नाशतो रक्ष मेें सदा।
दैवीसंकटतो रक्ष, आकस्मिकविपत्तित: ॥६॥
शाकिनी-भूत-वैतालान् राक्षसांश्च निवारय ।
वने रणे गृहे ग्रामे, रक्ष राज्यसभादिषु ॥७॥
इष्टसिद्धिं महासिद्धिं , जय लक्ष्मी विवर्द्धय ।
तपागच्छ-नायकं ऊँ ह्रींँ श्रीँ माणिभद्रवीरं ॥८॥
नमोस्तु ते मम शांति तृष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृध्दिं ।
सिद्धिं समृद्धिं वश्यं रक्षां च, कुरु कुरु स्वाहा ॥९॥
श्री मणिभद्र वीर चमत्कारी स्तोत्र ( Shri Manibhadra Veer Stotra )
।। श्री मणिभद्रवीर स्तोत्र।।
ॐ नमामि मणिभद्रं,वन्दे वीर महाबलिं ।
विपत्तिकाले माम् रक्ष, रक्ष माम् देव माणिभद्रे ।।
ॐ आं क्रों ह्रीं मंत्ररूपे महाबलीं रक्षं सदा ।
माम् शरणं शरणं तव, रक्ष माम् देव माणिभद्रे ।।
भ्रां भ्रीं भूम भ्रं: मंत्ररूपे तव भक्ति प्रभावतः ।
प्रत्यक्षं दर्शनं देहि, रक्ष माम् देव ! माणिभद्रे ।।
धर्मार्थ काम मोक्षच्चेव, कामदात्रु, सुखसंपदा ।
महाभीती विनाशाय रक्ष माम् देव ! माणिभद्रे ।।
झां झीं झूम झ: मंत्ररूपे, तव शरीरं शुशोभितं ।
स्राम सः ते तु प्रत्यक्षम, रक्ष माम् देव ! माणिभद्रे ।।
सुखड़ी श्रीफ़लंशचैव , कामदं मोक्षदं तथा ।
आधीं व्याधीं विपत्तीम च, रक्ष माम् देव ! माणिभद्रे ।।
राजभयं चोरभयं नास्ति, न च सर्पेण डस्यते ।
सर्व मंगल कारकं देव, रक्ष माम् देव ! माणिभद्रे ।।
श्री मणिभद्र वीर चालीसा ( Shri Manibhadra Veer Chalisa )
जन्म हुआ उज्जैन नगर में, मगरवाड़ा में स्वर्ग सिधारे।
तपागच्छ अधिष्ठायक देवा, श्रावकगण के ताज सितारे ।। 1 ।।
मस्तक पूजा उज्जयिनी में, आगलोड़ में धड़ की पूजा।
मगरवाडे पिण्डी की पूजा, देखा ऐसा देव न दूजा।। 2 ।।
कलियुग में है जाग्रत स्वामी, संघ सकल के मंगलकारी।
रोग शोक हरते है सबके, जपते तुमको नित नर-नारी ।। 3 ।।
श्यामवर्ण अजमुख मनोहारी, शीश मुकुट तेजस्वीधारी।
विघ्न – निवारक अन्तर्यामी, जिनवर के है आज्ञाकारी ।। 4 ।।
त्रिभुवन में है तेज़ अनुपम, माणिभद्र है जन हितकारी।
महामुनि धरते ध्यान तुम्हारा, महिमा देखि जग में भारी ।। 5 ।।
तुम देवों के देव निराले, वीर महाबली तारणहारे।
दुःख संकट हर्त्ता हो देवा, जन -जन तेरा नाम पुकारे ।। 6 ।।
बावन वीर तुम्हारे वश में, चौसठ योगिनी नाम उच्चारे।
जो मणिभद्र जपे नित हरदम, उन सबको ये पार उतारे ।। 7 ।।
समकितधारी विपत्ति विनाशक, सहाय करो हे अन्तर्यामी।
दुःख दारिद्र निवारो देवा, श्रावकगण के सच्चे स्वामी ।। 8 ।।
जो कोई मन से ध्यान लगाते, उनके सब संकट मिट जाते।
रिद्धि सिद्धिदाता सुखदायी, सुमिरन करके सब सुख पाते ।। 9 ।।
वन्ध्या को तुम सन्तति देते, निर्धन की झोली भर देते।
अंधों को तुम आँखे देकर, हरा भरा जीवन कर देते ।। 10 ।।
कोढ़ी का हर रोग निवारण, कंचन सी काया कर देते।
भूखों को देते हो भोजन, दुखियों की पीड़ा हर लेते ।। 11 ।।
भूत- प्रेत- भय शत्रु विनाशक, माणिभद्र हैं षटकर धारी।
तुम हो संघ सकल रखवारे, गुण गाती नित दुनिया सारी ।। 12 ।।
आधि – व्याधि हर्त्ता, सुखकर्ता, डाकिनी शाकिनी कष्ट निवारो।
निर्बल को बल देते स्वामी, रक्षक बनकर पार उतारो।। 13 ।।
कृपा आपकी हो जाए तो, अकाल मृत्यु का त्रास ना होगा।
अकाल की छाया न पड़ेगी, महामारी उत्पात ना होगा ।। 14 ।।
चोर लुटेरों का भय जग में, कभी नहीं संताप करेगा।
अग्नि का भय नहीं रहेगा, मणिभद्र सब विघ्न हरेगा ।। 15 ।।
शक्तिशाली मणिभद्र हमारे, सकल संघ के काम सुधारो।
कृपा करो हे अंतर्यामी, भव सिंधु से पार उतारो ।। 16 ।।
कार्य सिद्ध करते भक्तों के, मन वांछित फल सबको देते।
देव हो सच्चे प्रकट प्रभावी, आप शरण में सबको लेते ।। 17 ।।
तन मन से जो सेवा करते, पाप -पुंज उन सबके हरते।
कृपापात्र बनकर महाबली के, निश्चित वे वैतरणी तैरते ।। 18 ।।
सन्मति तुम देते जन – जन को, माणिभद्र दादा ! उपकारी।
सिद्धिदाता, भाग्यविधाता, भविजन के सच्चे हितकारी ।। 19 ।।
खडग – त्रिशूल सदा करधारी, मुदगर – अंकुश, नाग विराजे।
छुमक -छुमक पग झांझर बाजे, कर में तोरे डमरू बाजे ।। 20 ।।
माणिभद्र की सेवा करके, सर्पदंश का भय नहीं रहता।
भक्त तुम्हारा नहीं कदापि, प्रकृति की बाधा सहता ।। 21 ।।
माणिभद्र जपे जो कोई, घर – घर में मंगल है होई।
जिनका नहीं है अपना कोई, माणिभद्र सहायक होई ।। 22 ।।
माणिभद्र की कृपा रहेगी, लक्ष्मी आ भण्डार भरेगी।
जीवन बगिया हरी रहेगी, ऋद्धि अपना काम करेगी ।। 23 ।।
माणिभद्र महाबली देवा ! संघ सकल मिल करता सेवा।
जो मरते थे भूख – प्यास से, वो पाते अब सुमधुर मेवा ।। 24 ।।
व्यंतर देव उपद्रव करते, माणिभद्र बाधायें हरते।
शत्रु वहां आने से डरते, रक्षा वीर महाबली करते ।। 25 ।।
माणिभद्र का सुमिरन करलो, आँखे मूँद तिजोरी भर लो।
पाप – पुंज सब अपने हर लो, शनैः शनैः भवसागर तर लो ।। 26 ।।
ईति -भीति व्यापे नहीं कोई, माणिभद्र जो मन में होई।
संपत्ति जो होगी कही खोयी, आन मिलेगी सत्वर सोई ।। 27 ।।
काम – कुम्भ और कल्पवृक्ष है, माणिभद्र का नाम निराला।
कामधेनु अरु चिंतामणि है, जीवन में कर देता उजाला ।। 28 ।।
माणिभद्र का ध्यान लगाओ, सपने में नित दर्शन पाओ।
आग्लोड़ उज्जयनी जाओ, मगरवाड जा गुण – गुण गाओ ।। 29 ।।
माणिभद्र जी कष्ट निवारे, उत्पातों से नित्य उबारे।
भक्तों के नित काम सँवारें, डूबती नैय्या पार उतारे ।। 30 ।।
माणिभद्र की भक्ति से ही, मन की सब शंकाए मिटती।
उनकी नित पूजा करने से, विपत्तियां सारी ही कटती ।। 31 ।।
माणिभद्र के सुमिरन से ही, मारग के कंटक हट जाते।
घुमड़ – घुमड़ जो उमड़ चले हो, कष्टों के बादल छंट जाते ।। 32 ।।
श्रद्धा जो रखते नर -नारी, जीवन में सुख वे पाते है।
संकट-मोचन मणिभद्र जी, घर में मंगल बरसाते है ।। 33 ।।
हम भूले – भटके भक्तों को, माणिभद्र जी ! राह बताओ।
हम तो है किंकर चरणों के, बाँह पकड़कर हमें उठाओं ।। 34 ।।
तपागच्छ के अधिष्ठायक हो, मेहर करो हे समकितधारी।
हम चरणों की सेवा चाहे, दर्शन दो स्वामी अविकारी ।। 35 ।।
माणिभद्र महाराज देवा, सकल संघ की रक्षा करना।
मन – मंदिर में बसकर देवा, नित भण्ड़ार सभी के भरना ।। 36 ।।
रोज उतारे आरती देवा, प्रत्यक्ष दर्शन हमको देना।
मेवा मिठाईं, थाल चढ़ाये, चरणों में हमको ले लेना ।। 37 ।।
माणिभद्र हम गिरे हुओं को, दुविधाओं से आज बचाओं।
आज शरण में ले लो हमको, वीर महाबली तत्पर आओ ।। 38 ।।
जाग्रत – ज्योति, महाबली देवा, संघ चतुर्विध विनती करता।
आज अर्चना, पूजा करके, पाप- पुंज सब अपने हरता ।। 39 ।।
( कलश )
हे महाबली ! वीर देवा ! शरण में अब लीजिये।
हम तुम्हारे चरण किंकर, देव रक्षा कीजिये ।।
माणिभद्र चालीसा जो गाये, पूर्ण होगी कामना।
नैन नहीं होगा कदापि, उलझनों से सामना।। 40।।
श्री मणिभद्र वीर प्रभावशाली मंत्र ( Shri ManibhadraVeer Mantra )
।। ॐ अ सि आ उ सा नमः श्री माणिभद्र दिशतु मम सदा सर्व कार्येषु सिद्धिम ।।
विशेष : प्रतिदिन कम से कम 27 बार इस मंत्र का जाप अवश्य करे। इस मंत्र के प्रभाव से सभी रुके हुए काम शीघ्रता से पूर्णता को प्राप्त होते है।
श्री मणिभद्र वीर आरती ( Shri Manibhadra Veer Aarti Sangrah )
|| श्री मणिभद्र वीर जी की आरती रूमज़ूम रूमजूम करु ||
रूमज़ूम रूमजूम करु आरती माणिभद्र साहेब तोरी,
सबल विघनका नाश करी, इच्छा पूरी साहेब तू मेरी.
मस्तक तुमारे मुगट बिराजे, कुंडल की शोभा भारी,
पाय घुंघरु रूमजूम बाजे, जिनमंदिर शोभा भारी.
पहेले हाथमें गदा बिराजे, दूसरे हाथ डमरू,
तीसरे हाथ त्रिशूल बिराजे, चौथे हाथ घुंघरु.
खिचड़ी भात ने रोटी लापसी पुरण की पोली,
अमृत साथ लेउ मिसरी, खीर खांड़ ने धनथोली.
खांजा, लाड़ू, दहीवड़ा ने पापड़ ने पूडी,
घेबर मागे सेव सवालां, बादाम पिस्ता चारोली.
श्याम सुंदर यु कर बोले, सुनो माणिभद्र स्वामी,
तुमारे चरण की सेवा शोभे हो मुजने सारे नमी.
श्री मणिभद्र वीर जी की आरती – जय जय आरति माणिभद्र ईन्द्रा
जय जय आरति माणिभद्र ईन्द्रा,
बावन वीर शीर मुगट जडींद्रा ।
तपगच्छ अधिष्ठायक विख्याता
अतिय विघन दुःख हरो विधाता ।
तुम सेवकनां संकट चुरो,
मन वंछित सुख संपदा पूरो ।
खडग त्रिशूल डमरु गाजे,
मृगदल अंकुश नाग विराजे ।
षट् भूजा गज वाहन सुन्दर,
लोढी पोशाल संघ वृद्धि पुरन्दर ।
विनये श्री आणंद सुरिधीर,
आशा पूरा मगरवाडिया वीर,
आशा पूरा उज्जनीया वीर,
आशा पूरा आगलोडीया वीर ।
श्री मणिभद्र वीर जी की आरती – जय जय निधि, जय माणिक देवा, जय माणिक देवा
जय जय निधि, जय माणिक देवा, जय माणिक देवा,
हरिहर ब्रह्म पुरंदर, करता तुज सेवा, जयदेव जयदेव.
तू वीराधिवीरा, तू वांछित दाता, तू वांछित दाता.
माता-पिता सहोदर स्वामी, छो प्रभु जगतत्रा. जयदेव जयदेव.
हरि करी बंधन उदधि, फनिधर अरिअनला,
ऐ तुज नामें नासे, साते भय सबाला. जयदेव जयदेव.
डाक त्रिशूल फूलमाला, पाशांकुश छाजे,
एक कर दानव मस्तक, एम षट भुजराजे. जयदेव जयदेव.
तु भैरव तू किंनर, तु जग महा दिवो तु जग महा दिवो,
काम कल्पतरु धनु, तु प्रभु चिरंजिवो. जयदेव जयदेव.
तपगच्छपति सूरी ध्यावे तुज ध्यानं,
माणिभद्र भद्रांकर, आशा विसरामं, जयदेव जयदेव.
सावंत अठारसें पासंठ, श्री माधव मास.
दीप विजय कविरायनी, पुरो सर्व आश. जयदेव जयदेव.
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