24 वे तीर्थंकर Shri Mahaveer Swami Ji Pooja – श्री महावीर स्वामी जी जिन पूजा

श्री महावीर स्वामी जी जिन पूजा (Shri Mahaveer Swami Ji Pooja) कविश्री वृन्दावनदास जी द्वारा अनुपम कृति है। इस पूजा को पढ़ते एवं सुनते वक्त मनुष्यों का हृदय भाव विभोर हो प्रभु की भक्ति में झूम उठता है। प्रभु भक्ति का आनंद। …

श्री महावीर स्वामी जी जिन पूजा – Shri Mahaveer Swami Ji Pooja

कविश्री वृन्दावनदास जी

(मत्त-गयंद छन्द)

श्रीमत वीर हरें भव-पीर, भरें सुख-सीर अनाकुलताई |
केहरि-अंक अरीकर-दंक, नयें हरि-पंकति-मौलि सुहाई ||
मैं तुमको इत थापत हूं प्रभु! भक्ति-समेत हिये हरषाई |
हे करुणा-धन-धारक देव! इहाँ अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई ||

ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव: भव: वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)

 

क्षीरोदधि-सम शुचि नीर, कंचन-भृंग भरूं|
प्रभु वेग हरो भवपीर, यातैं धार करूं||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।१।

मलयागिर चंदनसार, केसर-संग घसूं|
प्रभु भव-आताप निवार, पूजत हिय हुलसूं||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय भवाताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।२।

तंदुल सित शशिसम शुद्ध, लीनों थार भरी|
तसु पुंज धरौं अविरुद्ध, पावों शिवनगरी||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।३।

सुरतरु के सुमन समेत, सुमन सुमन प्यारे|
सो मनमथ-भंजन हेत, पूजूँ पद थारे||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वन्सनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।४।

रस रज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी|
पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख अरी||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।

तम खंडित मंडित नेह, दीपक जोवत हूँ|
तुम पदतर हे सुखगेह, भ्रमतम खोवत हूँ||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।६।

हरिचंदन अगर कपूर, चूर सुगंध करा|
तुम पदतर खेवत भूरि, आठों कर्म जरा||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।७।

रितुफल कल-वर्जित लाय, कंचनथार भरूं|
शिवफलहित हे जिनराय, तुम ढिंग भेंट धरूं||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।८।

जल-फल वसु सजि हिम-थार, तन-मन मोद धरूं|
गुण गाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरूं||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो|
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मति-दायक हो||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।९।

( पंचकल्याणक-अर्घ्यावली )

(राग टप्पा)

मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा |
गरभ साढ़-सित-छट्ठ लियो थिति, त्रिशला-उर अघहरना ||
सुरि-सुरपति तित सेव करी नित, मैं पूजूँ भवतरना |
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा |
ॐ ह्रीं अषाढ़शुक्ल-षष्ठ्यां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।१।

जनम चैत-सित-तेरस के दिन, कुंडलपुर कन वरना|
सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजूं भवहरना|
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा|
ॐ ह्रीं चैत्र-शुक्ल-त्रयोदश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।२।

मगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना|
नृप-कुमार घर पारन कीनों, मैं पूजूं तुम चरना|
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा|
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्ण-दशम्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।३।

शुक्ल-दशैं-बैसाख दिवस अरि, घाति चतुक क्षय करना|
केवल लहि भवि भवसर तारे, जजूं चरन सुखभरना|
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा|
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्ल-दशम्यां केवलज्ञान-मंडिताय श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।४।

कार्तिक-श्याम-अमावस शिव-तिय, पावापुर तें वरना|
गण-फनिवृन्द जजें तित बहुविध, मैं पूजूं भयहरना|
नाथ! मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी,
मोहि राखो हो शरणा|

मोहि राखो हो शरणा|
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्ण-अमावस्यायां मोक्षमंगल-मंडितायअर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।

Shri Mahaveer Swami Ji Pooja – जयमाला

(छन्द हरिगीतिका २८ मात्रा)

गणधर अशनिधर चक्रधर, हलधर गदाधर वरवदा|
अरु चापधर विद्या-सु-धर, तिरशूलधर सेवहिं सदा||
दु:खहरन आनंदभरन तारन, तरन चरन रसाल हैं|
सुकुमाल गुन-मनिमाल उन्नत, भाल की जयमाल है||

(छन्द घत्ता)

जय त्रिशलानंदन, हरिकृतवंदन, जगदानंदन चंदवरं|
भवताप-निकंदन, तनकन-मंदन, रहित-सपंदन नयनधरं||

(छन्द त्रोटक)

जय केवलभानु-कला-सदनं, भवि-कोक-विकासन कंज-वनं|
जगजीत महारिपु-मोहहरं, रजज्ञान-दृगांबर चूर करं ||१||

गर्भादिक-मंगल मंडित हो, दु:ख-दारिद को नित खंडित हो|
जगमाँहिं तुम्हीं सतपंडित हो, तुम ही भवभाव-विहंडित हो ||२||

हरिवंश-सरोजन को रवि हो, बलवंत महंत तुम्हीं कवि हो|
लहि केवलधर्म प्रकाश कियो, अब लों सोई मारग राजति हो ||३||

पुनि आप तने गुण माहिं सही, सुर मग्न रहें जितने सबही|
तिनकी वनिता गुन गावत हैं, लय-ताननि सों मनभावत हैं ||४||

पुनि नाचत रंग उमंग भरी, तुव भक्ति विषै पग एम धरी |
झननं झननं झननं झननं, सुर लेत तहाँ तननं तननं ||५||

घननं घननं घन-घंट बजे, दृम दृम दृम दृम मिरदंग सजे |
गगनांगन-गर्भगता सुगता, ततता ततता अतता वितता ||६||

धृगतां धृगतां गति बाजत है, सुरताल रसाल जु छाजत है |
सननं सननं सननं नभ में, इकरूप अनेक जु धारि भ्रमें ||७||

किन्नर-सुरि बीन बजावत हैं, तुमरो जस उज्ज्वल गावत हैं|
करताल विषैं करताल धरें, सुरताल विशाल जु नाद करें ||८||

इन आदि अनेक उछाह भरी, सुर भक्ति करें प्रभुजी तुमरी|
तुमही जगजीवन के पितु हो, तुमही बिन कारन तें हितु हो ||९||

तुमही सब विघ्न-विनाशन हो, तुमही निज-आनंद-भासन हो|
तुमही चित-चिंतित दायक हो, जगमाँहिं तुम्हीं सब-लायक हो ||१०||

तुमरे पन-मंगल माँहिं सही, जिय उत्तम-पुन्य लियो सबही|
हम तो तुमरी शरणागत हैं, तुमरे गुन में मन पागत है ||११||

प्रभु मो-हिय आप सदा बसिये, जबलों वसु-कर्म नहीं नसिये|
तबलों तुम ध्यान हिये वरतों, तबलों श्रुत-चिंतन चित्त रतों ||१२||

तबलों व्रत-चारित चाहतु हों, तबलों शुभभाव सुगाहतु हों|
तबलों सतसंगति नित्त रहो, तबलों मम संजम चित्त गहो ||१३||

जबलों नहिं नाश करों अरि को, शिव नारि वरों समता धरि को|
यह द्यो तबलों हमको जिनजी, हम जाचतु हैं इतनी सुनजी ||१४||

(घत्ता छन्द)

श्रीवीर जिनेशा नमित-सुरेशा, नागनरेशा भगति-भरा|
‘वृन्दावन’ ध्यावें विघन-नशावें, वाँछित पावें शर्म वरा||

ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

(दोहा)

श्री सन्मति के जुगल-पद, जो पूजें धरि प्रीत|
वृन्दावन’ सो चतुर नर, लहे मुक्ति नवनीत||
।।इत्याशीर्वाद: पु्ष्पांजलिं क्षिपेत्।।

।। Shri Mahaveer Swami Ji Pooja सम्पूर्णम ।।


जैन पूजन संग्रह : 

विशेष : आप भगवान श्री महावीर स्वामी पूजा ( Shri Mahaveer Swami Ji Pooja  )जन -जन तक प्रसारित कर जैन धर्म के प्रचार में योगदान प्रदान करे !

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