मंगल मंगल होय जगत में। मंगल-भावना। मुनि श्री प्रमाण सागर जी
मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज की मंगल भावना जन -जन में प्रसिद्ध रचना मंगल मंगल होय जगत में।
( मंगल मंगल होय जगत में )
मंगल-मंगल होय जगत् में, सब मंगलमय होय।
इस धरती के हर प्राणी का, मन मंगलमय होय।।
कहीं क्लेश का लेश रहे ना, दु:ख कहीं भी ना होय।
मन में चिंता भय न सतावे, रोग-शोक नहीं होय।।
नहीं वैर अभिमान हो मन में, क्षोभ कभी नहीं होय।
मैत्री प्रेम का भाव रहे नित, मन मंगलमय होय।। मंगल-मंगल…
मन का सब संताप मिटे अरु, अंतर उज्ज्वल होय।
रागद्वेष औ मोह मिट जाये, आतम निर्मल होय।।
प्रभु का मंगलगान करे सब, पापों का क्षय होय।
इस जग के हर प्राणी का हर दिन, मंगलमय होय।। मंगल-मंगल…
गुरु हो मंगल, प्रभु हो मंगल, धर्म सुमंगल होय।।
मात-पिता का जीवन मंगल, परिजन मंगल होय।।
जन का मंगल, गण का मंगल, मन का मंगल होय।
राजा-प्रजा सभी का मंगल, धरा धर्ममय होय।। मंगल-मंगल…
मंगलमय होय प्रात हमारा, रात सुमंगल होय।
जीवन के हर पल हर क्षण की बात सुमंगल हो।
घर-घर में मंगल छा जावे, जन-जन मंगल होय।
इस धरती का कण-कण पावन औ मंगलमय होय।। मंगल-मंगल…
दोहा
सब जग में मंगल बढ़े, टले अमंगल भाव।
है ‘प्रमाण’ की भावना, सब में हो सद्भाव।।