चौबीस तीर्थंकरों के नाम, चिन्ह, रंग, मोक्षस्थान याद करने का आसान तरीका ।

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर ( भगवान ) होते है।  उन सभी तीर्थंकरों की पहचान उनके नाम, चिन्ह, रंग, मोक्ष स्थान के द्वारा की जाती है। तो हम आपके लिए उन्हें सरल तरीके से याद करने के लिए केवल 4 मुक्तक और चित्र के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। 

24 ( चौबीस तीर्थंकरों ) के नाम 


( नाम )

24 Teerthankar naam aur chinah


वृषभ अजित सम्भव अभिनन्दन, सुमति पदम सुपार्श्व जिनराय ।
चन्द्र पहुप शीतल श्रेयांश जिन, वासुपूज्य पूजित सुरराय ।।
विमल अनन्त धर्म जस उज्जवल, शान्ति कुन्थु अर मल्लि मनाय ।
मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्व प्रभु, वर्धमान पद शीश नवाय ।।


।। चिन्ह ।।


चिन्ह वृषभ गज घोड़ा बन्दर, चकवा लाल कमल स्वास्तिक ।
आधा चन्द्र मगर कल्पतरु, गेंडा भैंसा शूकर इक ।।
सेही वज्रदण्ड मृग बकरा, मीन कलश कछुआ क्रम से ।
नील कमल वा शंख सर्प सिंह, प्रभु जानो इन चिन्हों से ।।


।। रंग ।।

24 Tirthankar Colour - Rang
लाल पद्मप्रभु वासुपूज्य है, नीले पार्श्व सुपार्श्व कहे ।
श्वेत चन्द्रप्रभु पुष्पदन्त है, काले सुव्रत नेमि कहे ।।
शेष रहे सोलह तीर्थंकर, स्वर्ण रंग के वे जिनवर ।
मन – वच – तन से उनको पूजैं, वे देवे हमको शिवपुर ।।


।। मोक्ष स्थान ।।


अष्टापद से ऋषभनाथ जी, वासुपूज्य चम्पापुर से ।
नेमिनाथ गिरनार गिरी से, महावीर पावापुर से ।।
शेष बीस सम्मेद शिखर से, तीर्थंकर जी मोक्ष गये ।
मोक्ष महल पाने को हम सब, उनको माथा झुका रहे ।।

 


24 तीर्थंकरों के चिन्हों के नाम की सार्थकता

आदिनाथजी का कहता बैल, छोड़ो चार गति की जेल,
अजितनाथजी का कहता हाथी, जग में कोई नहीं है साथी।

शंभवनाथजी का कहता घोड़ा ,जीवन है अपना यह थोड़ा,
अभिनंदनजी का कहता बंदर ,कितनी कषाय भरी है अंदर ।

सुमतिनाथजी का कहता चकवा, धर्मात्मा का जग में है रुतवा,
पद्मप्रभजी का लाल कमल, कभी किसी से करो न छल ।

सुपार्श्वनाथजी का कहता साथिया, काटो अब तुम अब कर्म घातिया,
चंद्रप्रभजी का कहता चंद्रमा, सच्ची है जिनवाणी माॅं ।

पुष्पदंतजी का कहता मगर ,मोक्ष महल की चलो डगर,
शीतलनाथजी का कहता कल्पवृक्ष ,धर्म-कर्म में हो जा दक्ष ।

श्रेयांसनाथजी का कहता गेंडा ,कभी चलो ना रास्ता टेढ़ा,
वासुपूज्य का कहता भैंसा, जैसी करनी फल हो वैसा ।

विमलनाथजी का कहता सूकर, बुरे काम तू कभी न कर,
अनंतनाथजी का कहता सेही, अब तो हमें बनना है वैदेही ।

धर्मनाथजी का कहता वज्रदण्ड ,कभी ना करना कोई घमंड,
शांतिनाथजी का कहता हिरण, सत्य धर्म की रहो शरण ।

कुंथुनाथजी का कहता बकरा ,मोक्ष महल का पथ है सकरा,
अरनाथजी की कहती मीन ,रत्न कमा लो अब तुम तीन ।

मल्लिनाथजी का कहता कलशा, बनाओ मन को निर्मल जल सा,
मुनिसुव्रतजी का कहता कछुआ ,धर्म से जीवन सफल हुआ ।

नमिनाथजी का कहता कमल ,शुभ करनी का उत्तम फल,
नेमिनाथजी का कहता शंख,व्रती ,संयमी रहो निशंक ।

पार्श्वनाथजी का कहता सर्प ,मिटाओ मन से सारे दर्प,
महावीरजी का कहता शेर, चलो मोक्षमार्ग में करो न देर |

साभार: सुकुमाल प्रश्न मंजरी भाग 1

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