श्री सिद्धचक्र स्तुति | आराधना पाठ | माहात्म्य | Siddhchakra Stuti

श्री सिद्धचक्र स्तुति विधान यन्त्र – मंत्र की आराधना के प्रभाव से मैनासुंदरी ने अपने पति श्रीपाल आदि 700 कुष्ठ रोगियों का दुःख दूर किया था। इसके माहात्म्य की कथा ही अनंत है। यह महान शक्तिशाली है।

श्री सिद्धचक्र स्तुति माहात्म्य प्रथम 

रचनाकार: पण्डित श्री रतनचंद जी भारिल्ल

श्री सिद्धचक्र गुणगान करो मन आन भाव से प्राणी,
कर सिद्धों की अगवानी ॥टेक ।।

सिद्धों का सुमरन करने से, उनके अनुशीलन चिन्तन से,
प्रकटै शुद्धात्मप्रकाश, महा सुखदानी ऽऽऽ
पाओगे शिव रजधानी ॥ श्री सिद्धचक्र ।। १ ।।

श्रीपाल तत्त्वश्रद्धानी थे, वे स्व-पर भेदविज्ञानी थे,
निज-देह-नेह को त्याग, भक्ति उर आनी ऽऽऽ
हो गई पाप की हानि ।। श्री सिद्धचक्र ॥२॥

मैना भी आतमज्ञानी थी, जिनशासन की श्रद्धानी थी,
अशुभभाव से बचने को, जिनवर की पूजन ठानी ऽऽऽ
कर जिनवर की अगवानी ।। श्री सिद्धचक्र ॥ ३ ॥

भव-भोग छोड़ योगीश भये, श्रीपाल ध्यान धरि मोक्ष गये,
दूजे भव मैना पावे शिव रजधानीऽऽऽ
केवल रह गयी कहानी ।। श्री सिद्धचक्र ।।४।।

प्रभु दर्शन-अर्चन-वन्दन से, मिटता है मोह-तिमिर मन से,
निज शुद्ध-स्वरूप समझने का अवसर मिलता भवि प्राणी ऽऽऽ
पाते निज निधि विसरानी ।। श्री सिद्धचक्र ।।५।।

भक्ति से उर हर्षाया है, उत्सव युत पाठ रचाया है,
जब हरष हिये न समाया, तो फिर नृत्य करन की ठानी ऽऽऽ
जिनवर भक्ति सुखदानी ।।श्री सिद्धचक्र. ।।६।।

सब सिद्धचक्र का जाप जपो, उन ही का मन में ध्यान धरो,
नहिं रहे पाप की मन में नाम निशानी ऽऽऽ
बन जाओ शिवपथ गामी ।। श्री सिद्धचक्र. ।।७।।

जो भक्ति करे मन-वच-तन से, वह छूट जाये भव-बंधन से,
भविजन! भज लो भगवान, भगति उर आनी ऽऽऽ
मिट जैहै दुखद कहानी ।। श्री सिद्धचक्र ।। ८ ।।


विश्व प्रसिद्ध श्री सिद्धचक्र स्तुति माहात्म्य द्वितीय 

श्री सिद्ध चक्र का पाठ, करो दिन आठ ।

ठाठ से प्रानी, फल पायो मैना रानी ।।

 

मैना सुंदरी एक नारी थी, कौड़ी पति लाख दुखियारी थी ।

नहीं पड़े चैन दिन रैन व्यथित अकुलानी।। फल पायो००

 

जो पति का कुष्ठ मिटाउंगी, तो उभयलोक सुख पाउंगी ।

नहीं अजा गल स्तन वत्त, निष्फल जिंदगानी । फल पायो ००

 

एक दिन गयी जिं मंदिर में, दर्शन कर अति हरषी उर में ।

फिर लाखे साधू निर्ग्रन्थ दिगंबर ज्ञानी ।। फल००

 

बैठी कर मुनि को नमस्कार, निज निंदा करती बार बार ,

भर अश्रु नयन कही मुनि सों, दुखद कहानी ।। फल ००

 

बोले मुनि पुत्री! धैर्य धरो, श्री सिद्धचक्र का पाठ करो ।

नहीं रहे कुष्ठ की तन में नाम निशानी ।। फल००

 

सुन साधू वचन हरषी मैना, नहीं होय झूठ मुनि की बैना ।

करके श्रद्धा श्री सिद्धचक्र की ठानी।। फल००

 

जब पर्व अढाई आया था, उत्सव युक्त पाठ कराया था ।

सब के तन छिड़का यन्त्र न्वहन का पानी ।। फल००

 

गंधोदक छिड़क वसु दिन में, नहीं रहा कुष्ठ किंचित तन में ।

भई सात शतक की काय स्वर्ण समानी ।। फल००

 

भाव भोग भोगी योगीश भये, श्रीपाल कर्म हनी मोक्ष गए ।

दूजे भव मैना पावें शिव रजधानी ।। फल००

 

जो पाठ करे मन वच तन से, वे छुट जाए भव बंधन से।

मक्खन मत करो विकल्प कहे जिनवाणी । फल पायो००

 

श्री सिद्ध चक्र का पाठ, करो दिन आठ ।

ठाठ से प्रानी, फल पायो मैना रानी ।।


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