Parasnath Aarti – सौ इंद्रों से वन्दित देवाधिदेव श्री पार्श्वनाथ स्वामी आरती

काशी ( वाराणसी ) में जन्मे श्री सम्मेदशिखर जी से निर्वाण प्राप्त 23 वे तीर्थंकर श्री 1008 प्रभु पारसनाथ स्वामी मंगल आरती ( Parasnath Aarti ):-

ॐ जय पारस देवा ( Chintamani Parasnath Aarti ) 

ॐ जय पारस देवा स्वामी जय पारस देवा !
सुर नर मुनिजन तुम चरणन की करते नित सेवा |

पौष वदी ग्यारस काशी में आनंद अतिभारी,
अश्वसेन वामा माता उर लीनों अवतारी | ॐ जय..

श्यामवरण नवहस्त काय पग उरग लखन सोहैं,
सुरकृत अति अनुपम पा भूषण सबका मन मोहैं |ॐ जय..

जलते देख नाग नागिन को मंत्र नवकार दिया,
हरा कमठ का मान, ज्ञान का भानु प्रकाश किया | ॐ जय..

मात पिता तुम स्वामी मेरे, आस करूँ किसकी,
तुम बिन दाता और न कोई , शरण गहूँ जिसकी | ॐ जय..

तुम परमातम तुम अध्यातम तुम अंतर्यामी,
स्वर्ग-मोक्ष के दाता तुम हो, त्रिभुवन के स्वामी | ॐ जय..

दीनबंधु दु:खहरण जिनेश्वर, तुम ही हो मेरे,
दो शिवधाम को वास दास, हम द्वार खड़े तेरे | ॐ जय..

विपद-विकार मिटाओ मन का, अर्ज सुनो दाता,
सेवक द्वय कर जोड़ प्रभु के, चरणों चित लाता | ॐ जय..

|| Parasnath Aarti Mangalmayi Sampurnam ||

जैन आरती संग्रह : 

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