प्रभु पतित पावन स्तुति – Prabhu Patit Pawan Lyrics

 जैन धरम में सबसे अधिक प्रचलित ( प्रभु पतित पावन स्तुति – Prabhu Patit Pawan Lyrics) स्तुति है। इस स्तुति का पाठ श्री जिनेन्द्र देव के दर्शन के समय करना चाहिए।  इस स्तुति में श्री जिनेन्द्र प्रभु के गुणों का  गुणगान एवं इस संसार से मुक्ति की कामना की गयी है।

प्रभु पतित पावन स्तुति

प्रभु पतित-पावन मैं अपावन, चरण आयो सरन जी |

यो विरद आप निहार स्वामी, मेटो जामन मरन जी ||१||

तुम ना पिछान्या आन मान्या, देव विविध प्रकार जी |

या बुद्धि सेती निज न जान्यो, भ्रम गिन्या हितकार जी ||२||

भव-विकट-वन में कर्म-वैरी, ज्ञानधन मेरो हर्यो |

सब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय, अनिष्ट-गति धरतो फिर्यो ||३||

धन घड़ी यो धन दिवस यो ही, धन जनम मेरो भयो |

अब भाग मेरो उदय आयो, दरश प्रभु को लख लयो

छवि वीतरागी नग्न मुद्रा, दृष्टि नासा पे धरे |

वसु प्रातिहार्य अनंत गुणजुत, कोटि रवि छवि को हरें ||५||

मिट गयो तिमिर मिथ्यात्व मेरो, उदय रवि आतम भयो |

मो उर हरष ऐसो भयो, मनु रंक चिंतामणि लह्यो ||६||

मैं हाथ जोड़ नवाय मस्तक, वीनऊँ तुव चरन जी |

सर्वोत्कृष्ट त्रिलोकपति जिन, सुनहु तारण तरण जी ||७||

जाचूँ नहीं सुर-वास पुनि, नर-राज परिजन साथ जी |

‘बुध’ जाचहूँ तुव भक्ति भव भव, दीजिए शिवनाथजी ||८||

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