19 वें तीर्थंकर प्रभु श्री मल्लिनाथ जी चालीसा | Bhagwan Mallinath ji Chalisa

प्रभु श्री मल्लिनाथ जी चालीसा (Bhagwan Mallinath ji Chalisa) : जैन  धर्म के 24 तीर्थंकरों में उन्नीसवें तीर्थंकर प्रभु श्री मल्लिनाथ भगवन का चालीसा मोह रूपी मल्ल का मर्दन करने वाला है।  मल्लिनाथ भगवान् बाल ब्रह्मचारी पञ्च बालयति में से एक है।  यह चालीसा अति आनन्द की प्राप्ति कराने में सहायक है।

प्रभु श्री मल्लिनाथ जी चालीसा (Bhagwan Mallinath ji Chalisa)

मोहमल्ल मद मर्दन करते, मन्मथ दुर्ध्दर का मद हरते ।

धैर्य खडग से कर्म निवारे, बाल्यती को नमन हमारे ।।

बिहार प्रान्त की मिथिला नगरी, राज्य करे कुम्भ काश्यप गोत्री ।

प्रभावती महारानी उनकी, वर्षा होती थी रत्नो की ।।

अपराजित विमान को तज कर, जननी उदार बसे प्रभु आकर ।

मंगसिर शुक्ल एकादशी शुभ दिन, जन्मे तीन ज्ञान युक्त श्री जिन ।।

पूनम चन्द्र समान हो शोभित, इंद्र न्वहन करते हो मोहित ।

तांडव नृत्य करे खुश हो कर, निरखे प्रभु को विस्मित हो कर ।।

बढे प्यार से मल्लि कुमार, तन की शोभा हुई अपार ।

पचपन सहस आयु प्रभुवर की, पच्चीस धनु अवगाहन वपु की ।।

देख पुत्र की योग्य अवस्था, पिता ब्याह की करें व्यवस्था ।

मिथिलापूरी को खूब सजाया, कन्या पक्ष सुनकर हर्षाया ।।

निज मन में करते प्रभु मंथन, हैं विवाह एक मीठा बंधन ।

विषय भोग रूपी ये कर्दम, आत्म ज्ञान के करदे दुर्गम ।।

नहीं आसक्त हुए विषयन में, हुए विरक्त गये प्रभु वन में ।

मंगसिर शुक्ल एकादशी पावन, स्वामी दीक्षा करते धारण ।।

दो दिन तक धरा उपवास, वन में ही फिर किया निवास ।

तीसरे दिन प्रभु करे निवास, नन्दिषेण नृप दे आहार ।।

पात्रदान से हर्षित हो कर, अचरज पाँच करे सुर आकर ।

मल्लिनाथ जो लौटे वन में, लीन हुए आतम चिंतन में ।।

आत्मशुद्धि का प्रबल प्रमाण, अल्प समय में उपजा ज्ञान ।

केवलज्ञानी हुए छः दिन में, घंटे बजने लगे स्वर्ग में ।।

समोशरण की रचना साजे, अन्तरिक्ष में प्रभु विराजे ।

विशाक्ष आदि अट्ठाईस गणधर, चालीस सहस थे ज्ञानी मुनिवर।।

पथिको को सत्पथ दिखलाया, शिवपुर का सनमार्ग दिखाया ।

औषधि शाष्त्र अभय आहार, दान बताये चार प्रकार ।।

पाँच समिति लब्धि पांच, पांचो पैताले हैं साँच ।

षट लेश्या जीव षटकाय, षट द्रव्य कहते समझाय ।।

सात तत्त्व का वर्णन करते, सात नरक सुन भविमन डरते ।

सातों ने को मन में धारे, उत्तम जन संदेह निवारे ।।

दीर्घ काल तक दिया उपदेश, वाणी में कटुता नहीं लेश ।

आयु रहने पर एक मास, शिखर सम्मेद पे करते वास ।।

योग निरोध का करते पालन, प्रतिमा योग करें प्रभु धारण ।

कर्म नाश्ता कीने जिनराई, तत्क्षण मुक्ति रमा परणाई ।।

फाल्गुन शुक्ल पंचमी न्यारी, सिद्ध हुए जिनवर अविकारी ।

मोक्ष कल्याणक सुर नर करते, संवल कूट की पूजा करते ।।

चिन्ह कलश था मल्लिनाथ का, जीन महापावन था उनका ।

नरपुंगव थे वे जिनश्रेष्ठ, स्त्री कहे जो सत्य न लेश ।।

कोटि उपाय करो तुम सोच, स्त्रीभव से हो नहीं मोक्ष ।

महाबली थे वे शूरवीर, आत्म शत्रु जीते धार धीर ।।

अनुकम्पा से प्रभु मल्लि की, अल्पायु हो भव वल्लि की ।

अरज त्याही हैं बस अरुणा की, दृष्टि रहे सब पर करुणा की।।


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