Shri Vasupujya Ji Chalisa | 12 वें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य जी चालीसा

Shri Vasupujya Ji Chalisa : चम्पापुर नगरी में जन्मे पिता श्री महाराज वसुपूज्य जी एवं माता जयादेवी जी के लाड़ले  12 वें धर्मतीर्थ प्रवर्तक श्री वासुपूज्य भगवन चालीसा जन -जन के लिए कल्याणकारी हो। इसी मंगल भावना के साथ प्रस्तुत :-

श्री वासुपूज्य जी चालीसा – Shri Vasupujya Ji Chalisa 

वासु पूज्य महाराज का चालीसा सुखकार ।
विनय प्रेम से बॉचिये करके ध्यान विचार ।

जय श्री वासु पूज्य सुखकारी, दीन दयाल बाल ब्रह्मचारी ।
अदभुत चम्पापुर राजधानी, धर्मी न्यायी ज्ञानी दानी ।

वसू पूज्य यहाँ के राजा, करते राज काज निष्काजा ।
आपस में सब प्रेम बढाने, बारह शुद्ध भावना भाते ।

गऊ शेर आपस में मिलते, तीनों मौसम सुख में कटते ।
सब्जी फल घी दूध हों घर घर, आते जाते मुनि निरन्तर ।

वस्तु समय पर होती सारी, जहाँ न हों चोरी बीमारी ।
जिन मन्दिर पर ध्वजा फहरायें, घन्टे घरनावल झन्नायेँ ।

शोभित अतिशय मई प्रतिमाये, मन वैराग्य देख छा जाये ।
पूजन, दर्शन नव्हन कराये, करें आरती दीप जलायें ।

राग रागनी गायन गायें, तरह तरह के साज बजायें ।
कोई अलौकिक नृत्य दिखाये, श्रावक भक्ति में भर जायें ।

होती निशदिन शास्त्र सभायें, पद्मासन करते स्वाध्याये ।
विषय कषाये पाप नसायें, संयम नियम विवेक सुहाये ।

रागद्वेष अभिमान नशाते, गृहस्थी त्यागी धर्मं निभाते ।
मिटें परिग्रह सब तृष्णायें, अनेकान्त दश धर्म रमायें ।

छठ अषाढ़ बदी उर-आये, विजया रानी भाग्य जगाये ।
सुन रानी से सोलह सुपने, राजा मन में लगे हरषने ।

तीर्थंकर लें जन्म तुम्हारे, होंगे अब उद्धार हमारे ।
तीनो वक्त नित रत्न बरसते, विजया मां के आँगन भरते ।

साढे दस करोड़ थी गिनती, परजा अपनी झोली भरती ।
फागुन चौदस बदि जन्माये, सुरपति अदभुत जिन गुण गाये ।

मति श्रुत अवधि ज्ञान भंडारी, चालिस गुण सब अतिशय धारी ।
नाटक ताण्डव नृत्य दिखाये, नव भव प्रभुजी के दरशाये ।

पाण्डु शिला पर नव्हन करायें, वस्त्रभूषन वदन सजाये ।
सब जग उत्सव हर्ष मनायें, नारी नर सुर झूला झुलाये ।

बीते सुख में दिन बचपन के, हुए अठारह लारव वर्ष के ।
आप बारहवें हो तीर्थकर, भैसा चिंह आपका जिनवर ।

धनुष पचास बदन केशरिया, निस्पृह पर उपकार करइया ।
दर्शन पूजा जप तप करते, आत्म चिन्तवन में नित रमते ।

गुर-मुनियों का आदर करते, पाप विषय भोगों से बचते ।
शादी अपनी नहीं कराई, हारे तात मात समझाई ।

मात पिता राज तज दीने, दीक्षा ले दुद्धर तप कीने ।
माघ सुदी दोयज दिन आया, कैवलज्ञान आपने पाया ।

समोशरण सुर रचे जहाँ पर, छासठ उसमें रहते गणधर ।
वासु पूज्य की खिरती वाणी, जिसको गणधरवों ने जानी ।

मुख से उनके वो निकली थी, सब जीवों ने वह समझी थी ।
आपा आप आप प्रगटाया, निज गुण ज्ञान भान चमकाया ।

सब भूलों को राह दिखाई, रत्नत्रय की जोत जलाई ।
आत्म गुण अनुभव करवाया,‘सुमत’ जैनमत जग फैलाया ।

सुदी भादवा चौदस आई, चम्पा नगरी मुक्ती पाई ।
आयु बहत्तर लारव वर्ष की, बीती सारी हर्ष धर्म की ।

और चोरानवें थे श्री मुनिवर, पहुँच गये वो भी सब शिवपुर ।
तभी वहाँ इन्दर सुर आये, उत्सव मिल निर्वाण मनाये ।

देह उडी कर्पुर समाना, मधुर सुगन्धी फैला नाना ।
फैलाई रत्नों की माला, चारों दिशा चमके उजियाला ।

कहै सुमत क्या गुण जिन राई, तुम पर्वत हो मैं हूँ राई ।
जब ही भक्ती भाव हुआ है, चम्पापुर का ध्यान किया हैं ।
लगी आश मै भी कभी जाऊँ, वासु पूज्य के दर्शन पाऊँ ।

सोरठा
खेये धूप सुगन्ध, वासु पूज्य प्रभु ध्यान के ।
कर्म भार सब तार, रूप स्वरूप निहार के ।
मति जो मन में होय, रहें वैसी हो गति आय के ।
करो सुमत रसपान, सरल निजातम पाय के ।

।। Shri Vasupujya Ji Chalisa सम्पूर्णम ।।


विशेष निवेदन : आप सब इस Shri Vasupujya Ji Chalisa को जन जन तक सोशल मीडिया में शेयर करके माँ  जिनवाणी के अनुपम ज्ञान को प्रसारित करने में हमें सहयोग प्रदान करे।  जय जिनेन्द्र जी।


जैन चालीसा संग्रह पढ़े :

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now