5 Parmesthi Mangal Panchak Stotra। मंगल पञ्चक
Panch Parmesthi Mangal Panchak Stotra: इस स्तोत्र में पञ्च परमेष्ठी की स्तुति आराधना बड़े ही भक्ति भाव पूर्वक की गयी है। इस स्तोत्र के पढ़ने – सुनने से जीवन में अनन्त आनन्द की अनुभूति होती है।
श्री पञ्च परमेष्ठी मंगल पञ्चक
गुण रत्नभूषा विगतदूषा सौम्यभाव निशाकराः ।
सद्बोध भानु विभा-विभासित दिक्चया विदुषांवरा॥
नि:सीम सौख्य समूह मण्डित योग खण्डित रतिवराः ।
कुर्वन्तु मङ्गलमत्र मे श्री वीरनाथ जिनेश्वराः॥१॥
सध्यान-तीक्ष्ण-कृपाण-धारा निहतकर्मकदम्बका।
देवन्द्र-वृन्द नरेन्द्रवन्द्या प्राप्तसुख-निकुरम्बका।
योगीन्द्र-योग-निरूपणीया प्राप्तबोध-कलापका।
कुर्वन्तु मङ्गलमत्र मे सिद्धाः सदा सुखदायकाः ॥२॥
आचार पञ्चक चरण-चारण चुञ्चवः समताधराः ।
नाना तपो भरहैतिहापित-कर्मिका सुखिताकरा ॥
गुप्तित्रयी परिशीलनादिविभूषिता वदतांवरा।
कुर्वन्तु मङ्गलमत्र मे श्री सूरयोऽर्जित शंभरा ॥३॥
द्रव्यार्थ-भेद-विभिन्न-श्रुत भरपूर्ण तत्त्वनिभालिनो।
दुर्योग-योग-निरोध-दक्षाः सकलवर-गुण शालिनः॥
कर्तव्य-देशनतत्परा: विज्ञानगौरव-शालिनाः।
कुर्वन्तु मङ्गलमत्र मे गुरुदेवदीधितमालिनः ॥४॥
संयमसमित्यावश्यकापरिहाणिगुप्ति-विभूषिता।
पञ्चाक्षदान्ति-समुद्यता समता-सुधा-परिभूषिता॥
भूपृष्ठ विष्टरशायिनो विविधर्धिवृन्द विभूषिता।
कुर्वन्तु मङ्गलमत्र मे मुनयः सदा शमभूषिताः ॥५॥
॥ Panch Parmesthi Mangal Panchak Stotra सम्पूर्णम॥
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