माता जयश्यामा नन्दन श्री विमलनाथ भगवान चालीसा | Shri VimalNath ji Chalisa

पिता कृतवर्मा मातु श्री जयश्यामा जी के दुलारे माघ मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को जन्मे तेरहवें तीर्थंकर श्री विमल नाथ भगवन चालीसा ( VimalNath ji Chalisa).

सुवीर कूट से सिद्ध भये श्री VimalNath ji Chalisa

सिद्ध अनंतानंत नमन कर, सरस्वती को मन में ध्याय ।

विमल प्रभु की विमल भक्ति कर, चरण कमल में शीश नवाय ।।

जय श्री विमलनाथ विमलेश, आठो कर्म किये निःशेष ।

कृत वर्मा के राज दुलारे, रानी जयश्यामा के प्यारे ।।

मंगलिक शुभ सपने सारे, जगजननी ने देखे न्यारे ।

शुक्ल चतुर्थी माघ मास की, जन्म जयंती विमलनाथ की ।।

जन्मोत्सव देवों ने मनाया, विमलप्रभु शुभ नाम धराया ।

मेरु पर अभिषेक कराया, गंधोदक श्रद्धा से लगाया ।।

वस्त्राभूषण दिव्य पहनाकर, मात पिता को सौपा आकर ।

साठ लाख वर्षायु प्रभु की, अवगाहना थी साठ धनुष की ।।

कंचन जैसी छवि प्रभु तन की, महिमा कैसे गाऊ में उनकी ।

बचपन बीता, यौवन आया, पिता ने राजतिलक करवाया ।।

चयन करो सुन्दर वधुओ का, आयोजन किया शुभ विवाह का ।

एक दिन देखि ओस घास पर, हिमकण देखे नयन प्रितीभर ।।

हुआ संसर्ग सूर्य रश्मि से, लुप्त हुए सब मोती जैसे ।

हो विश्वास प्रभु को कैसे, खड़े रहे वे चित्रलिखित से ।।

क्षणभंगुर हैं ये संसार, एक धर्म ही हैं बस सार ।

वैराग्य ह्रदय में समाया, छोड़े क्रोध मान और माया ।।

घर पहुचे अनमने से होकर, राजपाठ निज सूत को देकर ।

देवभई शिविका पर चढ़कर, गए सहेतुक वन में जिनवर ।।

माघ मास चतुर्थी कारी, नमः सिद्ध कह दीक्षा धारी ।

रचना समोशरण हितकारी, दिव्य देशना हुई सुखकार ।।

उपशम करके मिथ्यात्व का, अनुभव करलो निज आतम का ।

मिथ्यातम का होय निवारण, मिटे संसार भ्रमण का कारण ।।

बिन सम्यक्त्व के जप तप पूजन, निष्फल हैं सारे फल अर्चन ।

निष्फल हैं विषयभोग सब, इनको त्यागो हेय जान अब ।।

द्रव्य भाव नो कर्मादि से, भिन्न है आतम देव सभी से ।

निश्च्य करके निज आतम का, ध्यान करो तुम परमातम का ।।

ऐसी प्यारी हित की वाणी, सुनकर सुखी हुए सब प्राणी ।

दूर दूर तक हुआ विहार, किया सभी ने आत्मोद्धार ।।

मंदर आदि पचपन गणधर, अडसठ सहस दिगंबर मुनिवर ।

उम्र रही जब तीस दिनों की, जा पहुचे सम्मेदशिखर जी ।।

हुआ बाह्य वैभव परिहार, शेष कर्म बंधन निखार ।

आवागमन का कर संहार, प्रभु ने पाया मोक्षागार ।।

षष्ठी कृष्ण मास आषाढ़, देव करें जिन भक्ति प्रगाढ़ ।

सुवीर कूट पूजे मन लाय, निर्वाणोत्सव करें हर्षाय ।।

जो भवि विमल प्रभु को ध्यावे, वे सब मनवांछित फल पावे ।

अरुणा करती विमल स्तवन, ढीले हो जावे भव बंधन ।।


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