श्री सिद्धचक्र आरती | Siddhchakra Aarti

सिद्धचक्र आरती : 

श्री सिद्धचक्र आरती 

जय सिद्धचक्र देवा, जय सिद्धचक्र देवा |

करत तुम्हारी निश-दिन, मन से सुर-नर-मुनि सेवा |

जय सिद्धचक्र देवा |

ज्ञानावरणी दर्शनावरणी मोह अंतराया,

नाम गोत्र वेदनीय आयु को नाशि मोक्ष पाया |

जय सिद्धचक्र देवा ||१||

ज्ञान-अनंत अनंत-दर्श-सुख बल-अनंतधारी,

अव्याबाध अमूर्ति अगुरुलघु अवगाहनधारी |

जय सिद्धचक्र देवा ||२||

तुम अशरीर शुद्ध चिन्मूरति स्वात्मरस-भोगी,

तुम्हें जपें आचार्योपाध्याय सर्व-साधु योगी |

जय सिद्धचक्र देवा ||३||

ब्रह्मा विष्णु महेश सुरेश, गणेश तुम्हें ध्यावें,

भवि-अलि तुम चरणाम्बुज-सेवत निर्भय-पद पावें |

जय सिद्धचक्र देवा ||४||

संकट-टारन अधम-उधारन, भवसागर तरणा,

अष्ट दुष्ट-रिपु-कर्म नष्ट करि, जन्म-मरण हरणा |

जय सिद्धचक्र देवा ||५||

दीन दु:खी असमर्थ दरिद्री, निर्धन तन-रोगी,

सिद्धचक्र का ध्यान भये ते, सुर-नर-सुख भोगी |

जय सिद्धचक्र देवा ||६||

डाकिनि शाकिनि भूत पिशाचिनि, व्यंतर उपसर्गा,

नाम लेत भगि जायँ छिनक, में सब देवी दुर्गा |

जय सिद्धचक्र देवा ||७||

बन रन शत्रु अग्नि जल पर्वत, विषधर पंचानन,

मिटे सकल भय,कष्ट हरे, जे सिद्धचक्र सुमिरन |

जय सिद्धचक्र देवा ||८||

मैनासुन्दरि कियो पाठ यह, पर्व-अठाइनि में,

पति-युत सात शतक कोढ़िन का, गया कुष्ठ छिन में |

जय सिद्धचक्र देवा ||९||

कार्तिक फाल्गुन साढ़ आठ दिन, सिद्धचक्र-पूजा,

करें शुद्ध-भावों से ‘मक्खन’, लहे न भव-दूजा |

जय सिद्धचक्र देवा ||१०||

ज्ञानावरणी दर्शनावरणी मोह अंतराया,

नाम गोत्र वेदनीय आयु को नाशि मोक्ष पाया |

जय सिद्धचक्र देवा ||१||

ज्ञान-अनंत अनंत-दर्श-सुख बल-अनंतधारी,

अव्याबाध अमूर्ति अगुरुलघु अवगाहनधारी |

जय सिद्धचक्र देवा ||२||

तुम अशरीर शुद्ध चिन्मूरति स्वात्मरस-भोगी,

तुम्हें जपें आचार्योपाध्याय सर्व-साधु योगी |

जय सिद्धचक्र देवा ||३||

ब्रह्मा विष्णु महेश सुरेश, गणेश तुम्हें ध्यावें,

भवि-अलि तुम चरणाम्बुज-सेवत निर्भय-पद पावें |

जय सिद्धचक्र देवा ||४||

संकट-टारन अधम-उधारन, भवसागर तरणा,

अष्ट दुष्ट-रिपु-कर्म नष्ट करि, जन्म-मरण हरणा |

जय सिद्धचक्र देवा ||५||

दीन दु:खी असमर्थ दरिद्री, निर्धन तन-रोगी,

सिद्धचक्र का ध्यान भये ते, सुर-नर-सुख भोगी |

जय सिद्धचक्र देवा ||६||

डाकिनि शाकिनि भूत पिशाचिनि, व्यंतर उपसर्गा,

नाम लेत भगि जायँ छिनक, में सब देवी दुर्गा |

जय सिद्धचक्र देवा ||७||

बन रन शत्रु अग्नि जल पर्वत, विषधर पंचानन,

मिटे सकल भय,कष्ट हरे, जे सिद्धचक्र सुमिरन |

जय सिद्धचक्र देवा ||८||

मैनासुन्दरि कियो पाठ यह, पर्व-अठाइनि में,

पति-युत सात शतक कोढ़िन का, गया कुष्ठ छिन में |

जय सिद्धचक्र देवा ||९||

कार्तिक फाल्गुन साढ़ आठ दिन, सिद्धचक्र-पूजा,

करें शुद्ध-भावों से ‘मक्खन’, लहे न भव-दूजा |

जय सिद्धचक्र देवा ||१०||


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