माता सुनंदा के लाडले श्री शीतलनाथ भगवान चालीसा | Sheetalnath Ji Chalisa

माघ कृष्ण द्वादश दिवस जन्मे जगत के सभी जीवों को शीतलता प्रदान करने वाले दसवे तीर्थंकर श्री शीतलनाथ भगवान चालीसा। जिनके गुणों के स्तवन से तन -मन दोनों  शीतल हो जाते है।

दसवे तीर्थंकर श्री शीतलनाथ भगवान चालीसा

सिद्ध प्रभु को नमन कर, अरिहंतो का ध्यान।
आचारज उवझाय को, करता नित्य प्रणाम।
शीतल प्रभु का नाम है, शीतलता को पाये।
शीतल चालीसा पढ़े, शत शत शीश झुकाये।

शीतल प्रभु जिनदेव हमारे, जग संताप से करो किनारे।
चंद्र बिम्ब न चन्दन शीतल, गंगा का ना नीर है शीतल।

शीतल है बस वचन तुम्हारे, आतम को दे शांति हमारे।
नगर भक्त नाम सुहाना, दृढ़रथ का था राज्य महान।

मात सुनंदा तब हर्षाये, शीतल प्रभु जब गर्भ में आये।
चेत कृष्ण अष्ठम थी प्यारी,  आरण स्वर्ग से आये सुखारी।

रत्नो ने आवास बनाया, लक्ष्मी ने तुमको अपनाया।
माघ कृष्ण द्वादश जब आयी, जन्म हुआ त्रिभुवन जिनराई।

सुर सुरेंद्र ऐरावत लाये, पाण्डुक शिला अभिषेक कराये।
एक लाख पूरब की आयु, सुख की निशदिन चलती वायु।

नब्बे धनुष की पाई काया, स्वर्ण समान रूप बतलाया।
धर्म अर्थ अरु काम का सेवन, फिर मुक्ति पाने का साधन।

ओस देख मोती सी लगती, सूर्य किरण से ही भग जाती।
दृश्य देख वैराग्य हुआ था, दीक्षा ले तप धार लिया था।

क्षण भंगुर है सुख की कलियाँ, झूठी है संसार की गलियाँ।
रिश्ते नाते मिट जायेगे, धर्म से ही मुक्ति पाएंगे।

लोकान्तिक देवों का आना, फिर उनका वैराग्य बढ़ाना।
इंद्र पालकी लेकर आया, शुक्रप्रभा शुभ नाम बताया।

वन जा वस्त्राभूषण त्यागे, आतम ध्यान में चित्त तब लागे।
कर्मो के बंधन को छोड़ा, मोह कर्म से नाता तोड़ा।

और कर्म के ढीले बंधन, मिटा प्रभु का कर्म का क्रंदन।
ज्ञान सूर्य तब जाकर प्रगटा, कर्म मेघ जब जाकर विघटा।

समवशरण जिन महल बनाया, धर्म सभा में पाठ पढ़ाया।
दौड़-दौड़ के भक्त ये आते, प्रभु दर्श से शांति पाते।

विपदाओं ने आना छोड़ा, संकट ने भी नाता तोड़ा।
खुशहाली का हुआ बसेरा, आनंद सुख का हुआ सवेरा।

है प्रभु मुझको पार लगाना, मुझको सत्पथ राह दिखाना।
तुमने भक्तो को है तारा, तुमने उनको दिया किनारा।

मेरी बार न देर लगाना, ऋद्धि सिद्धि का मिले खजाना।
आप जगत को शीतल दाता, मेरा ताप हरो जग त्राता।

सुबह शाम भक्ति को गाऊं, तेरे चरणा लगन लगाऊं।
और जगह आराम न पाऊं, बस तेरी शरणा सुख पाऊं।

योग निरोध जब धारण कीना, समवशरण तज धर्म नवीना।
श्री सम्मेद शिखर पर आये, वहाँ पे अंतिम ध्यान लगाये।

अंतिम लक्ष्य को तुमने पाया, तीर्थंकर बन मुक्ति को पाया।
कूट विद्युतवर यह कहलाये, भक्त जो जाकर दर्शन पाये।

सिद्धालय वासी कहलाये, नहीं लौट अब वापस आये।
है प्रभु मुझको पास बुलाना, शक्ति दो संयम का बाना।

ज्ञान चक्षु मेरे खुल जाए, सम्यग्दर्शन ज्ञान को पाये।
स्वस्ति तेरे चरण की चेरी, पार करो, ना करना देरी।

चालीसा जो नित पढ़े, मन वच काय लगाय।
 ऋद्धि सिद्धि मंगल बढ़े, शत-शत शीश झुकाये।
कर्म ताप नाशन किया, चालीसा मनहार।
शीतल प्रभु शीतल करे, आये जगत बहार।


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