हिमालय की गोद में जैन धर्म का पवित्र स्थल -बद्रीनाथ जैन मंदिर यात्रा व इतिहास
बद्रीनाथ जैन मंदिर ( Badrinath jain Temple ): बद्रीनाथ धाम वर्तमान में केवल हिन्दू आस्था का ही नहीं अपितु प्राचीन काल से जैन धर्म की आस्था, श्रद्धा, भक्ति का प्रतीक रहा है। वर्तमान में दोनों ही धर्मों के अनुयायी हिमालय की पवित्र गोद में बसे इस तीर्थ को अत्यंत ही श्रद्धा भाव से नमन -पूजन करते आ रहे है। प्रत्येक वर्ष अनगिनत श्रद्धालु इस तीर्थ दर्शन वंदन कर अपने जीवन को धन्य मानते है। आज हम इसी श्रृंखला में विस्तार से जानेगे बद्रीनाथ जैन मंदिर का इतिहास —
प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी की निर्वाण एवं मोक्ष स्थली बद्रीनाथ
जैन धर्म की वर्तमान काल की चौबीसी में से पहले तीर्थंकर जिनको हम आदिनाथ , ऋषभदेव, वृषभदेव आदि 1008 नामो से पूजते एवं आराधना भक्ति करते है। उन्ही की निर्वाण स्थली है श्री अष्टापद -बद्रीनाथ। भारत देश के उत्तराखण्ड राज्य में चमोली जिले के अंतर्गत बद्रीनाथ धाम ( अष्टापद जी ) . इस तीर्थ को गौरीशंकर, कैलाश, बद्रीविशाल, नंदा, द्रोणगिरि,नारायण, नर, और त्रिशूली पर्वतों के एक समूह के कारण अष्टापद भी कहा जाता है। और इसी भूमि को निर्वाणकाण्ड स्तुति में अष्टापद आदिश्वर स्वामी कहा गया है। अट्ठावयंमि ऋसहो यानी आदिनाथ जी की निर्वाण स्थली अष्टापद मानी गयी है। ऐसा प्राकृत भाषा की निर्वाण भक्ति में आया है। यही से असंख्यात मुनि भगवंत तपस्या करके मोक्ष गए है।
श्रीमदभगवत के अनुसार इसी भूमि पर ऋषभदेव जी के पिता नाभिराय और माता मरुदेवी ने पुत्र ऋषभदेव का राज्याभिषेक कर बद्रिकाश्रम में घोर तप करके समाधी को धारण किया था। उनकी साधना स्थली के रूप में आज भी नीलकंठ पर्वत पर नाभिराज के चरण चिन्ह, बाबा आदम के चरण आज भी विद्यमान है।
आदिनाथ जी के प्राचीन चरण चिन्ह चित्र :
हिमालय की यात्रा करने वाले प्रथम जैन मुनि
चित्र : आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज
सम्पूर्ण भारत में जैन धर्म की अद्वितीय प्रभावना करने वाले राष्ट्रसंत श्वेतपिच्छाचार्य आचार्य श्री १०८ विद्यानन्द जी मुनिराज जब एलाचार्य पद पर सुशोभित थे। उनका पदार्पण सन 1970 में इस पावन भूमि पर हुआ। जब उन्होंने भगवान् बद्रीनारायण के जब दिगम्बर स्वरुप ( निर्वस्त्र -श्रृंगार रहित ) अवस्था के दर्शन किये। तब आचार्य श्री ने मूर्ति के वास्तविक सत्य को समझ कर समाजजन को बताया कि प्राचीन काल से ही यह प्रतिमा आदिनाथ जी की है। आज दोनों ही धर्मों के अनुयायी बिना किसी भेद भाव के इस स्थान पर अपने जीवन को धन्य करते है। बद्रीनाथ जैन मंदिर आते समय श्रीनगर में भी एक प्राचीन जैन मंदिर है। यहाँ आचार्य श्री का मंगल चातुर्मास हुआ था। आप भी दर्शन कर लाभ प्राप्त करे।
अभिषेक समय ही होते है दिगंबर रूप में बद्रीनाथ में विराजित नारायण प्रतिमा के दर्शन
प्रतिदिन अभिषेक दर्शन के माध्यम से दिगंबर रूप में दर्शन देने वाली बद्रीनाथ मंदिर जी में विराजमान नारायण प्रतिमा बद्रीनाथ मंदिर के समीप तप्त कुंड के नीचे अलकनंदा नदी में गरुड़ कुंड से स्वप्न देकर निकली है। आज भी इस कुंड में अनेक जैन प्राचीन प्रतिमा उपलब्ध है। दिन में अनेकों बार हिन्दू मान्यताओं के अनुसार वहां के मुख्य पुजारी श्रीमान रावल जी के द्वारा दिन में सुबह पंचामृत अभिषेक, आरती , पूजा संपन्न की जाती है। जिसमे सुबह 4 से 6 के बीच होने वाले अभिषेक के समय ही इस प्रतिमा जी के दिगंबर मुद्रा में दर्शन प्राप्त हो पाते है। जिस अभिषेक एवं महाभिषेक के लिए वहां की समिति के द्वारा एक निश्चित राशि से बैठने की अनुमति प्रदान की जाती है।
आचार्य श्री की प्रेरणा और श्री देवकुमार कासलीवाल के अथक प्रयासों से बना जैन मंदिर
इंदौर से 1700 किलो मीटर की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ धाम आकर आचार्य श्री विद्यानंद जी के आशीर्वाद से श्रीमान देव कुमार जी कासलीवाल स्वयं अपने साथी स्व . श्री कैलाशचंद्र जी चौधरी एवं सम्पूर्ण जैन समाज के अथक सहयोग और प्रयासों से यहाँ पर एक विशाल जैन मंदिर, संतनिवास, धर्मशाला का निर्माण प्रारम्भ किया। वर्ष 2023 तक एक तरह से विलुप्त हो चुके इस निर्वाण सिद्धक्षेत्र की पुनः स्थापना को करीब पचास वर्ष पूर्ण हो चुके है। इस क्षेत्र पर अब तक अनेक दिगंबर साधु संतों का पदार्पण हो चुका है। बद्रीनाथ जैन मंदिर जी में 24 तीर्थंकरों के चरण चिन्ह भी विराजमान है और एक दिगम्बर प्रतिमा भी विराजमान है। जिसका अभिषेक- पूजन प्रतिदिन समाजजन द्वारा शुद्ध जल से किया जाता है।
कब और कैसे आये बद्रीनाथ जैन मंदिर पर
बद्रीनाथ जैन मंदिर निर्वाण स्थली के पट ( अक्षय तृतीया ) से अक्टूबर (शरद पूर्णिमा ) तक खुले रहते है। इस तीर्थ क्षेत्र की यात्रा हरिद्वार, ऋषिकेश व कोटद्वार से बसे एवं निजी टैक्सियो के माध्यम से की जा सकती है। निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली और देहरादून है। वर्तमान में निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार और ऋषिकेश है। आगे अभी कर्णप्रयाग तक रेलवे का काम निरंतर जारी है। यह पावन तीर्थ बद्रीनाथ जैन मंदिर ऋषिकेश से 298 k.m है।
इंदौर कमेटी करती है बद्रीनाथ जैन मंदिर जी की व्यवस्था संचालित
आदिनाथ आध्यात्मिक अहिंसा फाउण्डेशन अष्टापद बद्रीनाथ जिला चमोली यह ट्रस्ट का नाम है। जिसका मुख्य कार्यालय : महावीर ट्रस्ट, कीर्ति स्तम्भ, 63, एम. जी. रोड,रीगल चौराहा, इंदौर मध्य प्रदेश है।
आवास बुकिंग हेतु संपर्क सूत्र : कीर्ति पांड्या जी – Mo: 9425053439 , 9826768140, 7855522761, 6264940717.
Email :-mahaveertrust@rediffmail.com
Google map Link: Asthapad jain Temple
Website : http://adinathnirvanbhumi.com