6th Jain Tirthankar Shri Padamprabhu Chalisa- श्री पदमप्रभु चालीसा

Shri Padamprabhu Chalisa : जैन धर्म के छठवे तीर्थंकर कौशाम्बी नगरी में माता सुसीमा एवं पिता श्रीधर धरण राज के राज दुलारे 1008 श्री पदमप्रभ स्वामी जी। जिन्होंने श्री सम्मेदशिखर जी से मोक्ष पधारे जिनवर का चालीसा हम सभी के लिए कल्याणकारी हो। इसी भावना से प्रस्तुत :

Table of Contents

Shri Padamprabhu Chalisa

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करू प्रणाम ।

उपाध्याय आचार्य का, ले गुणकारी नाम ।।

सर्व साधू और सरस्वती, जिनमन्दिर सुखकार ।

पदमपुरी के पद्म को, मन मंदिर में धार।

 जय श्री पद्मप्रभु गुणकारी, भविजनो को तुम हो हितकारी ।

देवों के तुम देव कहप, छट्टे तीर्थंकर कहलाओ ।।

तिन काल तिहूँ जग की जानो, सब बातों को क्षण में पहिचानो ।

वेष दिगंबर धारण हारे, तुमसे कर्म शत्रु भी हारे ।।

 मूर्ति तुम्हारी कितनी सुन्दर, दृष्टी सुखद जमती नासा पर ।

क्रोध मान मद लोभ भगाया, राग द्वेष का लेश ना पाया ।।

वीतराग तुम कहलाते हो, सब जग के मन को भाते हो ।

कौशाम्बी नगरी कहलाये, राजा धारण जी बतलाये ।।

सुन्दर नाम सुसीमा उनके, जिनके उर से स्वामी जन्मे ।

कितनी लम्बी उमर कहाई, तीस लाख पूरब बतलाई ।।

इक दिन हाथी बंधा निरख कर, झट आया वैराग्य उमड़ कर ।

कार्तिक सुदी त्रयोदशी भारी, तूमने मुनि पद दीक्षा धारी।।

सारे राज पाट को तज कर, तभी मनोहर वन में पहुचे ।

तप कर केवल ज्ञान उपाया, चैत्र सुदी पूनम कहलाया ।।

एक सौ दस गणधर बतलाये, मुख्य वज्र चामर कहलाये ।

लाखों मुनि आर्यिका लाखों, श्रावक और श्राविका लाखों ।।

असंख्यात तिर्यंच बताये, देवी देव गिनत नहीं पाये।

फिर सम्मेद शिखर पर जाकर, शिवरमणी को ली परणाकर ।।

पंचम काल महादुखदायी, जब तुमने महिमा दिखलाई ।

जयपुर राज ग्राम बाड़ा हैं, स्टेशन शिवदासपुरा हैं ।।

मुला नाम का जाट का लड़का, घर की नींव खोदने लगा ।

खोदत खोदत मूर्ति दिखाई, उसने जनता को दिखलाई ।।

चिन्ह कमल लख लोग लुगाई, पदम प्रभु की मूर्ति बताई ।

मन में अति हर्षित होते हैं, अपने मन का मल धोते हैं ।।

तुमने यह अतिशय दिखलाया, भुत प्रेत को दूर भगाया ।

जब गंधोदक छींटे मारें, भुत प्रेत तब आप बकारे ।।

 जपने से जप नाम तुम्हारा, भुत प्रेत वो करे किनारा ।

ऐसी महिमा बतलातें हैं, अंधे भी आँखे पाते हैं ।।

प्रतिमा श्वेत वर्ण कहलाये, देखत ही ह्रदय को भाए ।

ध्यान तुम्हारा जो धरता हैं, इस भव से वो नर तरता हैं ।।

 अँधा देखे गूंगा गावे, लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे ।

बहरा सुन सुन खुश होवे, जिस पर कृपा तुम्हारी होवे ।।

मैं हूँ स्वामी दास तुम्हारा, मेरी नैया कर दो पार ।

चालिसे को चन्द्र बनाये, पद्मप्रभु को शीश नवाये ।।

सोरठा

नित ही चालीस बार, पाठ करे चालीस ।

खेय सुगंध अपार, पदमपुरी में आय के ।।

होय कुबेर समान, जन्म दरिद्र होय जो ।

जिसके नहीं संतान, नाम वंश जग में चले ।।

।। इति Shri Padamprabhu Chalisa सम्पूर्णम ।।


विशेष निवेदन : आप सब इस Shri Padamprabhu Ji Chalisa को जन जन तक सोशल मीडिया में शेयर करके माँ  जिनवाणी के अनुपम ज्ञान को प्रसारित करने में हमें सहयोग प्रदान करे।  जय जिनेन्द्र जी।


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